सरकार के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म प्रतिबंध पर भड़की जनता! काठमांडू में हिंसक प्रदर्शन, 9 की मौत

08 Sep 2025 17:54:42
 
Violent protests in Kathmandu
 (Image Source-Internet)
काठमांडू।
नेपाल की राजधानी और अन्य हिस्सों में सोमवार को भड़के हिंसक प्रदर्शनों (Violent protest) ने हालात बिगाड़ दिए। सरकार द्वारा फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप, यूट्यूब और स्नैपचैट समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद गुस्साए युवाओं ने संसद की ओर मार्च निकाला। इस दौरान प्रदर्शन हिंसक हो गया और सुरक्षाबलों के साथ झड़प में कम से कम 9 लोगों की मौत हो गई, जबकि 40 से अधिक घायल हुए। पुलिस के मुताबिक, स्थिति तब बिगड़ी जब हजारों युवाओं और छात्रों ने बैरिकेड तोड़ते हुए संसद भवन के नजदीकी निषिद्ध क्षेत्र में प्रवेश की कोशिश की। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज, वाटर कैनन, रबर बुलेट और आंसू गैस का इस्तेमाल किया।
 
 
पत्रकार भी घायल, प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग
स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, शुरुआती टकराव में एक व्यक्ति की मौत हुई थी, लेकिन बाद में पुलिस ने पुष्टि की कि काठमांडू में हिंसा के दौरान 9 लोगों की जान गई है। कई पत्रकार भी इस झड़प का शिकार हुए। नाया पत्रिका के दिपेन्द्र धुंगाना, नेपाल प्रेस के उमेश कार्की और कांतिपुर टेलीविजन के श्याम श्रेष्ठा रबर बुलेट से घायल हो गए और फिलहाल सिविल अस्पताल में इलाजरत हैं। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा गया कि प्रदर्शनकारी संसद गेट पर तोड़फोड़ कर रहे थे, जबकि पुलिस ढालों से खुद को बचाते हुए भीड़ पर रबर बुलेट चला रही थी। एक प्रदर्शनकारी ने ANI के हवाले से बताया कि पुलिस ने उसके दोस्त को सिर में गोली मारी है और "यह शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर सीधा हमला है।"
 
 
काठमांडू से बाहर भी फैला आंदोलन
यह आंदोलन सिर्फ राजधानी तक सीमित नहीं रहा। झापा जिले के दमक में प्रदर्शनकारियों ने नगर कार्यालय की ओर कूच करते हुए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का पुतला जलाया। यहां भी पुलिस और भीड़ में हिंसक टकराव हुआ, जिसमें एक प्रदर्शनकारी गंभीर रूप से घायल हो गया। कई मोटरसाइकिलों को आग के हवाले कर दिया गया और प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर आंसू गैस के गोले तक फेंक दिए। हालात बिगड़ने पर काठमांडू जिला प्रशासन ने स्थानीय प्रशासन अधिनियम की धारा 6 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी। इसके तहत दोपहर 12:30 बजे से रात 10 बजे तक संसद भवन, राष्ट्रपति निवास, उपराष्ट्रपति आवास और प्रधानमंत्री आवास समेत कई उच्च सुरक्षा क्षेत्रों में आवाजाही और सभा पर पाबंदी लगा दी गई।
 
 
सोशल मीडिया बैन पर जनता का गुस्सा
दरअसल, यह पूरा विवाद सरकार के उस फैसले से उपजा जिसमें 4 सितंबर की आधी रात से 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सरकार का तर्क था कि ये प्लेटफॉर्म नेपाल में पंजीकृत नहीं हैं और टैक्स भी नहीं चुकाते। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि ‘सोशल मीडिया संचालन, उपयोग और विनियमन विधेयक’ अभी संसद से पारित ही नहीं हुआ है, फिर भी सरकार ने बैन लागू कर दिया। यही कारण है कि युवाओं के बीच इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना जा रहा है। वाइबर, टिकटॉक, वी-टॉक जैसे ऐप नेपाल में रजिस्टर्ड हैं, लेकिन फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप जैसे बड़े प्लेटफॉर्म पर रोक ने आग में घी डालने का काम किया।
 
कलाकारों और युवाओं का समर्थन
इस आंदोलन को लेकर युवाओं के साथ-साथ कई जानी-मानी हस्तियां भी खुलकर सामने आईं। नेपाली अभिनेता हरि बंष आचार्य ने सोशल मीडिया पर लिखा, "आज का युवा सिर्फ सोचता नहीं, सवाल भी करता है। सड़क क्यों टूटी? जिम्मेदार कौन है? यह आवाज व्यवस्था के खिलाफ नहीं बल्कि उसके दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ है।" वहीं गायक व अभिनेता प्रकाश सपुत ने भी आंदोलन का समर्थन किया। उन्होंने प्रदर्शन में शामिल दो भाइयों को 25-25 हजार नेपाली रुपये भेजे और कहा कि इस पैसे का इस्तेमाल पानी और अन्य जरूरतों में किया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद हो सके। विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार का यह कदम न केवल युवा वर्ग बल्कि आम जनता में भी गहरा असंतोष पैदा कर रहा है।
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