"सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥"
Image Source:(Internet)
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा (Maa Kushmanda) की पूजा की जाती है। उनका नाम दो शब्दों से मिलकर बना है "कू" अर्थात छोटा, "उष्मा" अर्थात ऊर्जा और "अंड" अर्थात ब्रह्मांड। मान्यता है कि मां कूष्मांडा ने अपनी दिव्य मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड की रचना की। यही कारण है कि वे सृष्टि की आदिशक्ति कही जाती हैं।
मां कूष्मांडा का महत्व
मां कूष्मांडा के आठ हाथ हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। वे अपने हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल, अमृतकलश और जपमाला धारण करती हैं। उनका वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। उनके स्वरूप से यह संदेश मिलता है कि मुस्कान और सकारात्मक ऊर्जा से जीवन की हर अंधकारमयी परिस्थिति को प्रकाश में बदला जा सकता है। उनकी उपासना करने से भक्त के अंदर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और नया उत्साह जागृत होता है।
पूजा-विधि और अर्पण
चतुर्थ दिन प्रातः स्नान कर भक्त मां कूष्मांडा की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराते हैं और उन्हें सिंदूर तथा चंदन अर्पित करते हैं। उन्हें मालपुआ का भोग अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। साथ ही लाल या नारंगी फूल अर्पित करने से साधक को स्वास्थ्य और उन्नति का आशीर्वाद मिलता है। "ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः" मंत्र का जाप इस दिन विशेष फलदायी होता है। इस दिन की साधना से साधक का हृदय और मन तेजस्वी बनता है।
आध्यात्मिक संदेश
मां कूष्मांडा का संदेश है कि सृष्टि की शुरुआत ऊर्जा से हुई और हर जीवन का आधार भी ऊर्जा ही है। वे हमें यह सिखाती हैं कि सकारात्मकता, मुस्कान और आत्मविश्वास से हर अंधकार मिटाया जा सकता है। उनका रूप हमें प्रेरित करता है कि हम अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानें और उसका सही दिशा में उपयोग करें। चौथे दिन की साधना से साधक को सुख, शांति और लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।