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मुंबई।
कांग्रेस सांसद वर्षा गायकवाड़ (Varsha Gaikwad) ने पूर्व उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने नियमों को ताक पर रखकर मुंबई महानगरपालिका कर्मचारियों के लिए आरक्षित एक कीमती जमीन अपने करीबी और उद्योगपति मोहित कंबोज की कंपनी को दे दी। गायकवाड़ का दावा है कि जुहू स्थित लगभग 48,407 वर्गफुट का यह प्लॉट, जिसकी कीमत करीब 800 करोड़ रुपये आंकी गई है, मूल रूप से बीएमसी सफाई कर्मचारियों की कॉलोनी के लिए आरक्षित था। यह कॉलोनी 1965 से यहां मौजूद है और इसे समाज सुधारक साने गुरुजी ने जनता को समर्पित किया था।
"सफाई कर्मचारियों की जमीन पर भ्रष्टाचार"
वर्षा गायकवाड़ ने आरोप लगाया कि देवेंद्र फडणवीस ने सत्ता का दुरुपयोग करते हुए इस प्लॉट को मोहित कंबोज की कंपनी *एस्पेक्ट रियल्टी* को सौंप दिया। उन्होंने कहा कि "बीएमसी कर्मचारियों के मकानों के लिए आरक्षित जमीन पर यह निर्माण कंपनी काबिज हो गई है। यह भ्रष्टाचार साफ दिखाता है कि किस तरह से सत्ता के दबाव में आरक्षित भूखंडों का उपयोग चहेते बिल्डरों के हित में किया जा रहा है।" गायकवाड़ ने यह भी कहा कि इस पूरे घोटाले को अंजाम देने के लिए सामाजिक न्याय विभाग और अन्य कोषों का दुरुपयोग किया गया है।
प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी
गायकवाड़ ने आरोप लगाया कि अप्रैल 2025 तक इस प्लॉट को हड़पने की प्रक्रिया पूरी कर ली गई थी। इसके बाद 3 जुलाई को राज्य के शहरी विकास विभाग ने एक अधिसूचना जारी की और डीसी नियमों में संशोधन कर इसे एसआरए के लिए उपयुक्त घोषित कर दिया। खास बात यह रही कि इस फैसले पर जनता से कोई आपत्ति या सुझाव नहीं मांगे गए। इसके बाद 9 जुलाई को प्रस्ताव नगर निगम में पेश किया गया और मात्र चार दिनों में, यानी 13 जुलाई को, तत्कालीन आयुक्त ने इसे मंजूरी भी दे दी। गायकवाड़ ने सवाल उठाया कि आखिर इन अधिकारियों पर किसका दबाव था और पूर्व आयुक्त चहल का निर्णय मौजूदा आयुक्त गगरानी ने क्यों पलट दिया।
"मुख्यमंत्री की अनुमति के बिना संभव नहीं"
गायकवाड़ ने आरोप लगाया कि इस निर्णय में कई विभागों ने चुप्पी साध ली। ठोस कचरा विभाग ने भी कोई विरोध दर्ज नहीं कराया। उन्होंने कहा, "इस मामले में पहले *दर्शन डेवलपमेंट* को एनओसी दी गई थी जिसे बाद में रद्द कर दिया गया। सुधार विभाग की तत्कालीन अधिकारी उर्वशी मोडक ने इस फैसले का विरोध किया था, लेकिन अब वे भाजपा में शामिल हो चुकी हैं।" गायकवाड़ ने सवाल उठाया कि आखिर अब ऐसा क्या हुआ कि पूर्व का निर्णय पलट दिया गया। उन्होंने जोर देकर कहा कि इतने बड़े फैसले मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल की अनुमति के बिना नहीं हो सकते। ऐसे में नगर निगम ने यह फैसला किसके दबाव में लिया, इसका जवाब सरकार को देना होगा।