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मुंबई।
मराठा आरक्षण की लड़ाई एक बार फिर कानूनी मोड़ पर पहुँच गई है। मराठा आंदोलनकारी मनोज जरांगे पाटिल की भूख हड़ताल और व्यापक आंदोलन के दबाव में राज्य सरकार ने हैदराबाद गजेटियर (Hyderabad Gazetteer) को आधार मानते हुए नया सरकारी आदेश (जीआर) जारी किया था। इसके जरिए मराठवाड़ा के कुछ मराठा समुदाय के लोगों के लिए कुनबी–मराठा या मराठा–कुनबी प्रमाण पत्र प्राप्त करने का रास्ता साफ हो गया। साथ ही, प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दर्ज मामले भी वापस लेने का निर्णय लिया गया। लेकिन इस फैसले से ओबीसी समुदाय नाराज़ हो गया और अब मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुंच गया है।
एडवोकेट राज पाटिल ने दाखिल की कैविएट
राज्य सरकार के 2 सितंबर के जीआर के खिलाफ अदालत में याचिका दाखिल होने की संभावना को देखते हुए एडवोकेट राज पाटिल ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की है। इस कैविएट का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अगर कोई भी याचिका इस सरकारी आदेश को चुनौती देती है, तो निर्णय लेने से पहले प्रदर्शनकारियों का पक्ष भी सुना जाए। राज पाटिल ने मांग की है कि राज्य सरकार स्वयं भी कैविएट दाखिल करे, ताकि सरकार और आंदोलनकारी, दोनों का पक्ष कोर्ट में समान रूप से प्रस्तुत हो सके।
ओबीसी समुदाय का विरोध और कानूनी चुनौती
हैदराबाद गजेटियर पर आधारित इस निर्णय के खिलाफ ओबीसी समुदाय पहले से ही एकजुट हो चुका है। उनका कहना है कि इस फैसले से ओबीसी वर्ग के आरक्षण पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। एडवोकेट गुणरत्न सदावर्ते ने भी घोषणा की है कि वे इस निर्णय को अदालत में चुनौती देंगे। सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल हो जाने से अब स्थिति यह बन गई है कि जीआर को चुनौती देने वाली किसी भी याचिका पर सुनवाई से पहले आंदोलनकारियों और संबंधित पक्षों की दलीलें अनिवार्य रूप से सुनी जाएँगी। इस तरह कानूनी लड़ाई और जटिल हो गई है।
कैविएट का कानूनी महत्व
कैविएट एक प्रकार की औपचारिक कानूनी सूचना होती है, जिसे अदालत में दाखिल कर यह अधिकार प्राप्त किया जाता है कि संबंधित मामले में बिना सुनवाई किए कोई आदेश न दिया जाए। यानी जब तक कैविएट दाखिल करने वाले व्यक्ति का पक्ष नहीं सुना जाता, तब तक अदालत किसी प्रकार का निर्णय पारित नहीं कर सकती। मराठा आरक्षण से जुड़े इस मुद्दे में अब कैविएट दाखिल होने से यह तय हो गया है कि कुनबी प्रमाण पत्र और हैदराबाद गजेटियर पर आधारित सरकारी आदेश पर अंतिम फैसला सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद ही होगा। आने वाले दिनों में यह मामला राज्य की राजनीति और आरक्षण व्यवस्था दोनों पर बड़ा असर डाल सकता है।