बैल पोला और तान्हा पोला: परंपरा और संस्कृति का अद्भुत संगम

22 Aug 2025 18:10:30
 
Bail Pola
 (Image Source-Internet)
नागपुर।
शहर की गलियां इन दिनों रंग, उमंग और परंपरा से सराबोर हैं। बैल पोला और तन्हा पोला (Pola) का त्यौहार हर वर्ष कृषि संस्कृति और सामाजिक एकजुटता का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत करता है। खेतों के साथी बैलों के प्रति आभार जताने के लिए मनाया जाने वाला यह पर्व किसानों के जीवन में विशेष महत्व रखता है। खास बात यह है कि नागपुर में बैल पोला के ठीक अगले दिन तान्हा पोला और फिर ऐतिहासिक मारबत उत्सव की धूम होती है, जिससे शहर का वातावरण कई दिनों तक पूरी तरह उत्सवी बना रहता है।
 
बैलों का सम्मान और बच्चों की खुशी
बैल पोला के दिन किसानों के घरों में खास रौनक होती है। बैलों को स्नान कराकर उन पर हल्दी, चंदन और रंग-बिरंगे आभूषण सजाए जाते हैं। नए जूते पहनाए जाते हैं और विशेष पकवान खिलाए जाते हैं। इस मौके पर बाजारों में लकड़ी और मिट्टी के छोटे-छोटे बैल भी बिकते हैं, जिन्हें बच्चे बड़े चाव से घर लाते हैं। नागपुर के सीताबर्डी, इतवारी और बुधवारी जैसे पुराने बाजारों में इन खिलौनों की भरमार होती है। कीमतें कुछ सौ से लेकर हजारों रुपये तक जाती हैं, फिर भी परिवार इन्हें सहेज कर रखना पसंद करते हैं, क्योंकि ये बैल खेती और परिश्रम का प्रतीक माने जाते हैं।
 
तन्हा पोला और मरबत की गूंज
बैल पोला के बाद तान्हा पोला का आयोजन होता है, जब अकेले बैलों का सम्मान किया जाता है। यह परंपरा किसानों और उनके पशुओं के बीच भावनात्मक रिश्ते को उजागर करती है। इसी दिन नागपुर का सबसे प्रसिद्ध मारबत उत्सव भी शुरू होता है। 140 साल से अधिक पुरानी इस परंपरा में पीली और काली मरबत की विशाल प्रतिमा तैयार की जाती हैं, जिन्हें शहर की गलियों से निकालकर जुलूस के रूप में घुमाया जाता है। ढोल-ताशे की गूंज और पारंपरिक नारे “इडा पीडा घेऊन जागे मरबत” शहर की रगों में ऊर्जा भर देते हैं।
 
नागपुर की पहचान: परंपरा और आधुनिकता का संगम
नागपुर का बैल पोला और तान्हा पोला सिर्फ त्योहार नहीं, बल्कि यहां की पहचान है। यह परंपरा किसानों की मेहनत, बच्चों की मासूम खुशियों और सामाजिक एकजुटता को एक सूत्र में पिरोती है। बदलते समय में भी इन पर्वों की आत्मा वही है आभार, श्रद्धा और आनंद। आधुनिकता ने इन उत्सवों में नया रंग जरूर भरा है, लेकिन इनके केंद्र में आज भी बैल, खेती और सामाजिक समरसता ही हैं। यही कारण है कि नागपुर हर वर्ष इस पर्व के साथ अपनी सांस्कृतिक धरोहर को और मजबूती से दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है।
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