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नागपुर।
शहर की ऐतिहासिक पहचान बन चुका फुटाला तालाब (Futala lake) अब एक बड़े कानूनी मोड़ पर खड़ा है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस तालाब को संरक्षित वेटलैंड माना जाए या फिर इसे केवल मानव निर्मित जलाशय समझा जाए इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। मामला स्वच्छ एसोसिएशन, नागपुर द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है, जिसमें मेट्रो और विकास प्राधिकरण द्वारा किए जा रहे रिडेवलपमेंट कार्यों पर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि लेज़र शो, म्यूजिकल फाउंटेन और कृत्रिम इस्पाती बरगद का पेड़ न केवल झील की प्राकृतिक पारिस्थितिकी को प्रभावित करते हैं बल्कि वर्षा जल के प्राकृतिक प्रवाह को भी अवरुद्ध कर उसकी क्षमता घटाते हैं।
विरासत बनाम आधुनिकता
वहीं, नागपुर महानगरीय क्षेत्र विकास प्राधिकरण (NMRDA) और महा मेट्रो का तर्क है कि फुटाला तालाब वेटलैंड्स नियम, 2017 के अंतर्गत संरक्षित नहीं है। उन्होंने वीएनआईटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इस्पाती बरगद “फ्लोटिंग स्ट्रक्चर” है, जो जंजीरों और ब्लॉकों से बांधा गया है और स्थायी निर्माण नहीं है। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई ने भी अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए कहा कि विवादित पेड़ तालाब के कैचमेंट क्षेत्र में नहीं बल्कि किनारे पर स्थित है। घंटों चली दलीलों के बाद अदालत ने निर्णय सुरक्षित रखा। अब फैसला आने तक फुटाला तालाब विरासत और आधुनिक आकर्षण के बीच झूलती रहेगी एक ऐसी झील जो आज भी तेलांगखेड़ी गार्डन को सींचती है और अपने कानूनी अस्तित्व की अंतिम पहचान की प्रतीक्षा कर रही है।