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नागपुर।
महानगरपालिका (मनपा) के एनिमल बर्थ कंट्रोल (Animal birth control) प्रोग्राम में गंभीर अनियमितताएं सामने आई हैं। ऐसा कहना है सेव स्पीचलेस ऑर्गनाइजेशन की फाउंडर और एनिमल एक्टिविस्ट स्मिता मिरे का। उन्होंने हाल ही में राइट टू इन्फॉर्मेशन (RTI) दायर किया था जिसमें यह खुलासा हुआ कि शहर के तीन एबीसी केंद्रों में जानवरों की देखभाल और रिकॉर्डिंग में भारी कमी और पारदर्शिता का अभाव है। उन्होंने कहा कि RTI के तहत 2019 से 2025 तक की वित्तीय जानकारी मांगी गई थी। इससे पता चला कि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 42,656 कुत्तों का नसबंदी किया गया, लेकिन रिपोर्ट किए गए केवल 6 मौतों की संख्या असंभव और संदिग्ध है।
तीन केंद्र, तीन कहानियां
मनपा के तहत तीन एबीसी केंद्र संचालित हैं: भांडेवाड़ी (managed by Vets for Animals, satara), महाराजबाग (Managed by Swatantra Animal Welfare Society, Hyderabad) और गोरेवाड़ा ( Managed by Krishna Society for Animal, Pune)। भांडेवाडी में 5 मौतें दर्ज हैं, लेकिन उनमें से एक शव की पोस्टमार्टम तक नहीं की जा सकी। गोरेवाड़ा में केवल 1 मौत का दावा किया गया है, जबकि गवाहों के अनुसार और भी कई मृत्यु हुईं। महाराज बाग में शून्य मौतें दिखाना झूठ है। हमारे पास कम से कम 4 मौतों के सबूत हैं। कई मामले सीधे तौर पर गलत तरीके से पकड़ने और नसबंदी के तुरंत बाद की गई रिलीज से हुई हैं।
सर्जिकल असफलताएं और अव्यवस्था
गोरेवाड़ा और भांडेवाडी में नसबंदी में विफलताएं हुई हैं, जैसे कि टांके खुलना, आंत का बाहर आना और इसके परिणामस्वरूप कुत्तों की मौत। सिंबायोसिस कॉलेज के चार कुत्ते एक सप्ताह के भीतर ही मौत का शिकार हुए। इसके बावजूद मनपा कर्मचारियों ने उनके अंतिम संस्कार का शुल्क लिया। RTI से यह भी पता चला कि इन केंद्रों को किसी भी केंद्रीय या राज्य पशु कल्याण बोर्ड से वित्तीय सहायता नहीं मिलती और सभी खर्च जनता के पैसों से होते हैं।
निगरानी की कमी और सिस्टम विफल
एबीसी रूल्स, 2023 के तहत इन केंद्रों के लिए AWBI की अनुमति अनिवार्य है, लेकिन RTI में यह सामने आया कि कोई भी केंद्र अनुमति प्राप्त नहीं है। फरवरी में AWBI की अचानक जांच में कई उल्लंघन पाए गए: अस्वच्छ स्थितियां, अधिक भीड़ भाड़, सही रिकॉर्ड का अभाव और नसबंदी के लिए ऑटोक्लेव की कमी। लगभग 7 करोड़ रूपये की राशि एक शेल्टर के लिए आवंटित की गई, जबकि वहां केवल 200 कुत्तों का दावा किया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि सिस्टम पूरी तरह से विफल है और सरकारी निगरानी व जवाबदेही की गंभीर कमी है।
सिस्टम को सजा दे
पशु प्रेमी इंसानों के खिलाफ नहीं हैं। हम भ्रष्टाचार और क्रूरता के खिलाफ हैं। कुत्तों को “कष्ट” या समस्या का कारण बताकर दोषी ठहराया जा रहा है, जबकि असली समस्या है एक असफल सिस्टम जिसमें नकली रिकॉर्ड और कोई जवाबदेही नहीं है। यह आपका पैसा है, यह आपका शहर है। अगर यही हाल रहा, तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी कुत्तों की सुरक्षा नहीं कर पाएंगे फंड बर्बाद होंगे और जानवरों को भयानक पीड़ा सहनी पड़ेगी। सजा दें सिस्टम को न कि कुत्तों को और न ही उनके रक्षक को। जवाबदेही सुनिश्चित करें और भ्रष्टाचार को समाप्त करें।