सूरज की किरणों को मोड़ने की तैयारी! Climate Cooling के लिए ब्रिटेन में होंगे विवादास्पद ड्रोन और क्लाउड प्रयोग

    23-Jun-2025
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- ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए SRM तकनीक पर 60 मिलियन पाउंड खर्च करेगा ARIA

Britain(Image Source-Internet)  
एबी न्यूज़ नेटवर्क।
जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों से जूझ रही दुनिया अब आर्टिफिशियल तरीकों से धरती को ठंडा करने की ओर बढ़ रही है। ब्रिटेन (Britain) सरकार समर्थित एडवांस्ड रिसर्च एंड इनोवेशन एजेंसी (ARIA) ने "एक्सप्लोरिंग क्लाइमेट कूलिंग" कार्यक्रम के तहत करीब 60 मिलियन पाउंड के निवेश की घोषणा की है। इसका उद्देश्य सूरज की किरणों को परावर्तित कर ग्लोबल वार्मिंग में कमी लाना है। इस योजना के तहत आर्कटिक में समुद्री बर्फ को मोटा करने, बादलों को अधिक परावर्तक बनाने और अंतरिक्ष में दर्पण लगाने जैसे प्रयोग किए जाएंगे। हालांकि वैज्ञानिक समुदाय में इस तकनीक Solar Radiation Modification (SRM) को लेकर गहरी चिंता भी है।
 
आकाश में फुहारें और धूल के गुब्बारे : प्रयोगों की योजना
ARIA द्वारा घोषित पांच प्रमुख परियोजनाओं में समुद्री बर्फ की परत को मोटा करने का प्रयोग इस सर्दी में शुरू हो सकता है। एक अन्य प्रयोग में Marine Cloud Brightening (MCB) के तहत ब्रिटेन के तटवर्ती इलाके से समुद्र के खारे पानी की महीन फुहारें हवा में छोड़ी जाएगी, जिससे बादल अधिक चमकीले हो सके और सूरज की रोशनी को ज्यादा परावर्तित करें। एक और प्रस्तावित तकनीक है Stratospheric Aerosol Injection (SAI), जिसमें खनिज धूल से भरे गुब्बारे ऊंचाई पर भेजे जाएंगे ताकि यह देखा जा सके कि यह धूल वायुमंडल में कैसे व्यवहार करती है। हालांकि ARIA ने स्पष्ट किया है कि कोई भी विषैली सामग्री नहीं छोड़ी जाएगी और हर प्रयोग से पहले सार्वजनिक परामर्श और पर्यावरणीय मूल्यांकन अनिवार्य होगा।
 
तकनीक से आशा या भ्रम? वैज्ञानिकों के मतभेद
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रेमंड पियर हम्बर्ट ने SRM तकनीकों पर गहरी चिंता जताई है। उनका मानना है कि यह तकनीक “Plan B” नहीं बल्कि समस्या को टालने का तरीका है क्योंकि यह वायुमंडल में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को नहीं हटाती। शोधों में यह भी सामने आया है कि SRM तकनीकें उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अत्यधिक गर्मी, ध्रुवों पर असामान्य परिवर्तन और वर्षा चक्रों में गड़बड़ी ला सकती हैं। उदाहरण के लिए, नामीबिया तट के पास बादल चमकाने से दक्षिण अमेरिका में सूखा पड़ सकता है, जिससे अमेजन वर्षावन जैसे पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
 
भविष्य का समाधान या नई परेशानी?
हालांकि ARIA और उसके वैज्ञानिकों का मानना है कि यह शोध एक “ज्ञान की कमी” को भरने के लिए आवश्यक हैं, लेकिन आलोचक इसे डी-कार्बोनाइजेशन यानी उत्सर्जन में कटौती की असल जरूरत से ध्यान भटकाने वाला कदम मानते हैं। साथ ही, SAI तकनीकों में इस्तेमाल होने वाले हवाई जहाजों की ऊंचाई और क्षमताओं को लेकर भी व्यावहारिक चुनौतियां हैं। एक हालिया अध्ययन में कहा गया कि यदि मौजूदा विमानों से ही 8 मील की ऊंचाई पर एयरोसोल छोड़े जाएं, तो तीन गुना अधिक मात्रा में एयरोसोल की जरूरत होगी, जिससे एसिड रेन जैसे दुष्प्रभाव भी बढ़ सकते हैं। इसके अलावा, 'केमट्रेल' जैसे षड्यंत्र सिद्धांतों के कारण जनता में इन तकनीकों को लेकर अविश्वास भी एक बड़ी चुनौती है।