ओलिव रिडले कछुए: सबसे अधिक लेकिन फिर भी असुरक्षित

    08-May-2025
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Olive Ridley Turtles
 (Image Source : Internet)
 
ओलिव रिडले कछुए (Olive Ridley Turtles) अपनी जैतूनी हरे रंग की खोल के कारण पहचाने जाते हैं। ये संख्या में भले अधिक हों, पर ये केवल चुनिंदा तटीय क्षेत्रों में ही अंडे देते हैं, जिससे इनके घोंसलों को किसी भी तरह की क्षति इनकी पूरी प्रजाति को संकट में डाल सकती है।
 
संरक्षण उपायों ने दिलाई कामयाबी
साहू ने बताया कि इस सफलता के पीछे कई महत्वपूर्ण उपाय रहे, जिसमें रात्रि गश्त दो शिफ्टों में, नोडल टास्क फोर्स का गठन और जलवायु-लचीले हैचरी ढांचे की स्थापना शामिल है। ये कदम वन विभाग, मत्स्य विभाग, भारतीय तटरक्षक बल और मछुआरा संगठनों के समन्वय से लागू किए गए।
 
चेन्नई और कडलूर बने नेतृत्वकर्ता जिले
चेन्नई और कडलूर जिलों में सबसे अधिक नेस्टिंग और हैचिंग देखने को मिली। चेन्नई में नीलंकराय, बेसेंट नगर, कोवलम और पुलिकट की हैचरियां पूर्ण क्षमता पर कार्यरत रहीं। कडलूर में रसापेट्टई में निगरानी के लिए विशेष स्टाफ तैनात किया गया।
 
प्रौद्योगिकी और सटीक निगरानी
निगरानी में मदद के लिए एक मोबाइल ऐप का उपयोग किया गया जिसमें रीयल टाइम डेटा अपलोड किया गया। इसके जरिए कमजोर क्षेत्रों की पहचान और निगरानी आसान हो सकी। घोंसलों को दो घंटे के भीतर सुरक्षित हैचरियों में पहुंचाया गया।
 
सावधानीपूर्वक प्रक्रिया
हैच्लिंग्स को दिन के ठंडे समय (सुबह या शाम) में छोड़ा गया ताकि उन्हें गर्मी और शिकारियों से बचाया जा सके। घोंसलों के तापमान की निगरानी और टीमों को विशेष प्रशिक्षण से सफलता दर में सुधार हुआ।
 
प्रदूषण पर नियंत्रण पर ज़ोर
साहू ने बताया कि हैच्लिंग्स के छोटे आकार और संवेदनशीलता के कारण उन्हें टैग कर ट्रैक करना संभव नहीं। इसलिए विभाग ने प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने, और समुद्र में छोड़े घोंसलों को हटाने पर ज़ोर दिया है।
 
ओलिव रिडले का जीवनचक्र और लंबी समुद्री यात्रा
हैच्लिंग्स समुद्री धाराओं के साथ बहते हुए भारत-श्रीलंका के बीच के द्वीपों तक जाते हैं और लगभग 13-14 वर्ष की उम्र में जन्म स्थल पर लौटते हैं। इनकी नेस्टिंग का समय दिसंबर से मार्च तक होता है, जबकि अगस्त से लौटना शुरू होता है।
 
जलवायु परिवर्तन से लिंग अनुपात पर असर
तापमान समुद्री कछुओं के जीवन के हर चरण को प्रभावित करता है, यहाँ तक कि यह लिंग निर्धारण में भी भूमिका निभाता है। ज्यादा गर्म तापमान अधिकतम मादा कछुए पैदा करता है, जिससे लिंग संतुलन बिगड़ता है।
 
जलवायु-लचीली हैचरियाँ बनीं संरक्षक ढाल
सरकार ने ऐसी हैचरियां बनाई हैं जिनमें प्राकृतिक छतें हैं जो धूप और बारिश से सुरक्षा देती हैं। तापमान की निगरानी और समय पर हैचिंग से सफलता दर को स्थिर बनाए रखने की कोशिश की जा रही है।
 
तमिलनाडु मॉडल पूरे तटीय क्षेत्र में लागू करने की योजना
सुप्रिया साहू ने बताया कि विभाग अब चेन्नई-कडलूर मॉडल को तमिलनाडु के अन्य तटीय जिलों में भी लागू करने की योजना बना रहा है। “अब हमारा लक्ष्य केवल बनाए रखना नहीं, बल्कि और विस्तार करना है,” उन्होंने कहा।