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नागपुर।
नेशनल मेडिकल कमीशन (National Medical Commission) ने देशभर के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों को कारण बताओ नोटिस (शो-कॉज नोटिस) जारी किए हैं। पुणे का बीजे मेडिकल कॉलेज भी इसमें शामिल है, जबकि नागपुर का इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज इकलौता अपवाद रहा है। नोटिस का कारण कॉलेजों में स्टाफ और प्रोफेसर पदों की कमी के साथ-साथ अधूरी बुनियादी सुविधाएं बताई गई हैं।
सात दिन में जवाब नहीं तो लगेगा 1 करोड़ जुर्माना
एनएमसी ने स्पष्ट किया है कि यदि कॉलेजों ने सात दिनों के भीतर संतोषजनक जवाब नहीं दिया, तो प्रत्येक खामी के लिए 1 करोड़ का जुर्माना लगाया जाएगा। जुर्माना नहीं भरने की स्थिति में कॉलेज की मान्यता रद्द की जा सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह एनएमसी की नियमित प्रक्रिया है, लेकिन इस बार जांच में गंभीर कमियां पाई गई हैं।
स्टाफ और बुनियादी ढांचे की भारी कमी
एनएमसी की हालिया जांच में यह सामने आया कि कुछ कॉलेजों में फैकल्टी की संख्या 50 प्रतिशत से भी कम है। रत्नागिरी के सरकारी मेडिकल कॉलेज में केवल 18 प्रतिशत फैकल्टी मौजूद है। कई संस्थानों में ऑपरेशन थिएटर, शव (कैडैवर), लैबोरेटरी, और अन्य जरूरी सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं। बीजे मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. एकनाथ पवार ने बताया कि स्टाफ की ट्रांसफर, रिटायरमेंट और प्रमोशन के चलते ये कमी होती रहती है, और कॉलेज नोटिस का जवाब भेजने की प्रक्रिया में है।
छात्रों के भविष्य पर संकट, विशेषज्ञों की चेतावनी
पुणे स्थित भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल कॉलेज को भी फैकल्टी, रेजिडेंट्स, ट्यूटर, कैडैवर की कमी और बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता के कारण नोटिस मिला है। पूर्व उपमहापौर डॉ. सिद्धार्थ धेंडे ने सवाल उठाया कि ऐसे कॉलेज जिनके पास न तो लैब है, न हॉस्टल, और न ही पर्याप्त स्टाफ — वे कैसे योग्य डॉक्टर तैयार कर पाएंगे? विशेषज्ञों का मानना है कि कॉलेजों को अब स्टाफ की नियुक्ति और आवश्यक ढांचे के विकास को प्राथमिकता देनी होगी, वरना इसका सीधा असर वहां पढ़ रहे छात्रों पर पड़ेगा।