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नई दिल्ली:
भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून (Monsoon) ने इस साल शनिवार को केरल में दस्तक दे दी है, जो 2009 के बाद भारतीय मुख्यभूमि पर इसका सबसे जल्दी आगमन है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने बताया कि सामान्यतः मानसून 1 जून को केरल पहुंचता है और 8 जुलाई तक पूरे देश में फैल जाता है। लेकिन इस बार यह समय से पहले, मई में ही पहुंच गया है। इससे पहले 2009 में मानसून 23 मई को आया था, जबकि 1990 में यह 19 मई को पहुंचा था, जो अब तक का सबसे जल्दी आगमन है।
मानसून की तिथि का वर्षा की मात्रा से नहीं होता सीधा संबंध
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, मानसून के जल्दी या देर से आने का कुल मौसमी वर्षा पर कोई सीधा असर नहीं पड़ता। हर वर्ष मानसून की गति, उसकी तीव्रता और वर्षा की मात्रा वैश्विक, क्षेत्रीय और स्थानीय कारकों पर निर्भर करती है। उदाहरण के तौर पर, पिछले वर्षों में मानसून अलग-अलग तिथियों को केरल पहुंचा—जैसे 2023 में 8 जून, 2022 में 29 मई, 2021 में 3 जून—लेकिन कुल वर्षा अलग-अलग रही। IMD ने इस साल अप्रैल में भविष्यवाणी की थी कि 2025 में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है और एल नीनो प्रभाव की आशंका नहीं है।
खेती और जल संसाधनों के लिए मानसून अहम
भारत में कृषि क्षेत्र मानसून पर काफी हद तक निर्भर करता है, क्योंकि यह देश की लगभग 42 प्रतिशत आबादी की आजीविका का आधार है और देश की GDP में 18.2 प्रतिशत का योगदान करता है। साथ ही, मानसून से जलाशयों में जल स्तर बढ़ता है, जो पीने के पानी और बिजली उत्पादन के लिए आवश्यक होता है। वर्ष 2024 में देश में 934.8 मिमी वर्षा हुई, जो औसत से 108 प्रतिशत अधिक रही और 2020 के बाद सबसे अधिक थी। इसके मुकाबले 2023 में यह मात्रा 820 मिमी (94.4%) रही थी।