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नागपुर।
महाराष्ट्र दिवस (Maharashtra Day) केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक भावना है, जो राज्य की सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक एकता को सलाम करती है। नागपुर, जिसे महाराष्ट्र का दिल कहा जाता है, इस दिन अपने ऐतिहासिक वाड़ों, मंदिरों और गलियों के माध्यम से उस गौरवशाली विरासत को जीवंत करता है, जो गोंडों की बहादुरी और भोंसलों की मराठी पहचान में रची-बसी है। महाल क्षेत्र की बहुभाषी और बहु धार्मिक परंपरा आज भी महाराष्ट्र की आत्मा को प्रतिबिंबित करती है। यहां की हर गली 'महाराष्ट्र माझा' के गर्व से गूंजती है और यही कारण है कि नागपुर न केवल राज्य के भूगोल में, बल्कि उसकी सांस्कृतिक चेतना में भी विशेष स्थान रखता है।
विविधता में एकता का प्रतीक
नागपुर सिर्फ एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संगम है। यहां गोंड शासकों की वीरता, भोंसलों की मराठी संस्कृति और पारसी समुदाय की बौद्धिक विरासत साथ-साथ पनपी है। बंगाल, कर्नाटक और राजस्थान जैसे राज्यों से आए कारीगरों ने इस शहर की वास्तुकला को अद्वितीय स्वरूप दिया। महाल की संकरी गलियों में बने लकड़ी के खंभों वाले पारंपरिक वाड़े और मंदिर न केवल ऐतिहासिक धरोहर हैं, बल्कि यह दिखाते हैं कि किस तरह नागपुर ने विविध संस्कृतियों को एक-दूसरे में समाहित किया है। इसी सांस्कृतिक समरसता ने नागपुर को महाराष्ट्र की आत्मा में बसने वाला शहर बना दिया है।
गांधीसागर से महल तक का सांस्कृतिक सफर
नागपुर का सांस्कृतिक विकास गांधीसागर (पूर्व में जुम्मा तालाब) के इर्द-गिर्द हुआ, जहां से गोंड राजाओं के महल तक जाने वाला मार्ग आज भी ऐतिहासिक महत्व रखता है। यह मार्ग केवल एक सड़क नहीं, बल्कि राजकीय शोभायात्राओं और धार्मिक आयोजनों का साक्षी रहा है। भक्त बुलंद शाह द्वारा औरंगज़ेब की सहायता से बसाया गया नागपुर, विभिन्न राज्यों से आए शिल्पकारों की कला से समृद्ध हुआ। यह ऐतिहासिक यात्रा न केवल नागपुर की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है, बल्कि उसे एक बहुसांस्कृतिक पहचान भी प्रदान करती है।
वास्तुकला, संगीत और परंपरा की साझी विरासत
नागपुर की पारंपरिक वास्तुकला, जैसे चिटनवीस वाड़ा और बका बाई वाड़ा, स्थानीय जलवायु के अनुरूप डिजाइन की गई है। इन वाड़ों में लकड़ी के खंभे, खुले आंगन और छाया युक्त छतें गर्मी से राहत और वर्षा से सुरक्षा प्रदान करती हैं। वहीं, महाल क्षेत्र के विठ्ठल-रुक्माई और मुरलीधर मंदिर स्थापत्य कला के अद्भुत उदाहरण हैं। बाबूराव देशमुख वाड़ा कभी शास्त्रीय संगीत की गूंज से जीवंत था, जहां देशभर के कलाकार सुरों की साधना करते थे। अब इन धरोहरों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए हेरिटेज वॉक और सौंदर्यीकरण जैसे प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि नागपुर की यह समृद्ध सांस्कृतिक विरासत जीवित रहे और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहे।