प्राथमिक शिक्षा में हिंदी अनिवार्य करने के फैसले पर विवाद! आदित्य ठाकरे ने साधा निशाना

18 Apr 2025 16:20:38
 
Aditya Thackeray
 (Image Source : Internet)
मुंबई।
महाराष्ट्र सरकार ने इस वर्ष से स्कूल शिक्षा विभाग के लिए सीबीएसई की नई नीति को अपनाया है। इसके तहत कक्षा पहली से ही हिंदी (Hindi) भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाने का निर्णय लिया गया है। राज्य की इस नीति के अनुसार छात्रों को तीन भाषाओं – मराठी, अंग्रेजी और हिंदी – का अध्ययन करना अनिवार्य होगा। हालांकि, इस निर्णय के खिलाफ अब विरोध की आवाजें तेज हो गई हैं।
 
राज ठाकरे का विरोध: 'हम हिंदू हैं, हिंदी नहीं'
मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने इस फैसले का स्पष्ट रूप से विरोध करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में शिक्षा केवल मराठी में ही दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा, 'हम हिंदू हैं, हिंदी नहीं।' उन्होंने इस निर्णय को महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान पर आघात बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। मनसे कार्यकर्ताओं ने विरोध स्वरूप घाटकोपर में हिंदी की शैक्षणिक किताबें जलाकर प्रदर्शन किया, जिस दौरान मनसे सचिव अभिषेक सावंत को पुलिस ने हिरासत में लिया।
 
आदित्य ठाकरे का संतुलित रुख
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के विधायक आदित्य ठाकरे ने इस विषय पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि भाषा का विरोध नहीं है, लेकिन कक्षा पहली से ही तीन भाषाएं पढ़ाना बच्चों पर अत्यधिक बोझ डालेगा। उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे भाषा सिखाना बेहतर होगा। उन्होंने तंज कसते हुए पूछा, 'क्या जिन मंत्रियों ने यह परिपत्र जारी किया है, वे खुद कोई एक भाषा सही से जानते हैं?'
 
शिक्षकों पर अतिरिक्त बोझ
आदित्य ठाकरे ने शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त समस्याओं की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा कि कई स्कूलों में केवल एक ही शिक्षक होता है और ऐसे में तीन भाषाएं पढ़ाना व्यवहारिक नहीं है। उन्होंने मंत्री दादा भूसे पर तंज कसते हुए कहा कि जो सरकार स्कूल ड्रेस तक नहीं दे पा रही, वह तीसरी भाषा को अनिवार्य कर रही है। इससे शिक्षकों पर भारी मानसिक और शैक्षणिक दबाव पड़ेगा।
 
भाषा बनाम राजनीति
आदित्य ठाकरे ने इस मुद्दे को राजनीति से जोड़ते हुए कहा कि हाल ही में हुई राजनीतिक बैठकों और चर्चाओं को देखकर लगता है कि यह हिंदी बनाम मराठी का मुद्दा बिहार चुनाव की तैयारी के तहत उभारा गया है। उन्होंने कहा, 'जितनी भाषाएं आप जानते हैं, उतनी तरक्की करते हैं,' लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भाषा सिखाने का तरीका व्यवहारिक होना चाहिए, अन्यथा शिक्षा व्यवस्था पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
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