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रायपुर।
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के स्वास्थ्य विभाग द्वारा राज्य के जशपुर जिले में आदिम जनजाति समुदाय 'बिरहोर'-विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह (PVTG) के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए किए गए प्रयासों के अब सार्थक परिणाम सामने आ रहे हैं। इस समुदाय के लोग अब संस्थागत प्रसव और सरकार द्वारा प्रदान की जा रही अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं को प्राथमिकता दे रहे हैं। जशपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. जी एस जात्रा ने कहा कि बिरहोर, एक बहुत ही पिछड़ी जनजाति है, जो शुरू में संस्थागत प्रसव, वैक्सीनेशन, दवाओं और अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं से बचती थी, इसके बजाय वे पारंपरिक उपचार विधियों में विश्वास करते हैं।
डॉक्टरों पर भरोसा पैदा हुआ
CMHO ने कहा, 'हमारे स्वास्थ्य विभाग ने बिरहोर जनजातियों के गांवों में चिकित्सा शिविर आयोजित करके कड़ी मेहनत की, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को संस्थागत प्रसव, दवाओं, सरकार और अन्य के लाभों के बारे में समझाया और जानकारी दी गई। निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप, बिरहोर लोग अब वैक्सीनेशन कराने, ईएनटी जांच कराने, संस्थागत प्रसव कराने और सभी प्रकार के स्वास्थ्य परीक्षणों के लिए अस्पतालों में जाने के लिए आ रहे हैं।' उन्होंने कहा कि शुरुआत में वे काफी डरे हुए थे, खासकर इंजेक्शन को लेकर, लेकिन धीरे-धीरे स्थिति बदली और अब उनमें डॉक्टरों पर भरोसा पैदा हो गया है। जिला प्रशासन के मुताबिक मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि बिरहोर जनजाति को स्वास्थ्य लाभ मिलना चाहिए। सीएम साय के विजन के मुताबिक इन लोगों को जरूरी सुविधाएं मिल रही हैं।
रहते हैं 97 परिवार
बिरहोर जनजाति जशपुर जिले के कुंवारी और बगीचा ब्लॉक में निवास करती है। 2011 की जनगणना के अनुसार बिरहोर जनजाति जिले के 5 विकासखंडों के 10 गांवों में निवास करती है, जिनमें 97 परिवार हैं। बिरहोर जनजाति की महिलाएं अपनी परंपरा के अनुसार 'कुड़िया' या 'कुर्मा' नामक छोटी झोपड़ियों में 'कुसेरदाई' या 'सुइनदाई' नामक पारंपरिक परिचारिका की मदद से अपने बच्चे को जन्म देती हैं। प्रसव के सातवें दिन मां-बच्चे की जोड़ी को नहलाया जाता है और धूप में रखा जाता है। उसी दिन झोपड़ी भी तोड़ दी जाती है। गौरतलब है कि पहले यह परम्परागत प्रथा थी, लेकिन स्वास्थ्य कर्मियों, मितानिन दीदियों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के निरंतर प्रयास से इसमें उल्लेखनीय सुधार हुआ है। आज बिरहोर महिलाएं प्रसव के लिए स्वास्थ्य केन्द्रों पर जाती हैं। इतना ही नहीं, जो जनजाति कभी डॉक्टर और नर्स को देखकर जंगलों में भाग जाती थी, आज वैक्सीनेशन, पोलियो ड्रॉप, कोविड-19 के वैक्सीन और सर्दी-जुकाम-बुखार की दवा के लिए अस्पताल जाती है। काफी प्रयासों के बाद सरकार ने बिरहोर समुदाय के लिए बहेराखार गांव में बस्ती बसाई और उसका नाम शंकर नगर रखा। गौरतलब है कि बिरहोर समुदाय को भारत के राष्ट्रपति की गोद ली हुई संतान कहा जाता है।
अब स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठा रहे
कुनकुरी की एएनएम प्रभा एक्का ने बताया, "बेहराखार गांव में बिरहोर जनजाति के 24 परिवार रहते हैं और मैं पिछले 22 सालों से उनकी सेवा कर रही हूं। राज्य सरकार उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ना चाहती है। पहले जब वैक्सीनेशन अभियान के लिए टीम उनके बस्तियों में जाती थी तो ये लोग छिप जाते थे। लगातार प्रयासों से स्थिति में काफी बदलाव आया और अब वे अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं।' अब स्थिति में काफी बदलाव आया है और महिलाएं जैसे ही गर्भवती होती हैं, वे मितानिन को इसकी जानकारी देती हैं और जांच के साथ-साथ वैक्सीनेशन के लिए अस्पताल भी जाती हैं। बिरहोर समुदाय की महिला अनीता ने छत्तीसगढ़ सरकार का आभार जताते हुए बताया कि अब उनका समुदाय स्वास्थ्य केंद्रों में दी जा रही स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठा रहा है।