पढ़ने की संस्कृति खत्म नहीं, तरीका बदला है – मुकुल कानिटकर

    01-Dec-2025
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नागपुर बुक फेस्टिवल और ज़ीरो माइल लिट फेस्टिवल का भव्य समापन
 
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नागपुर।
पिछले 9 दिनों में नागपुर बुक फेस्टिवल (Nagpur Book Festival) 2025 में लाखों लोग पहुंचे। उनमें युवा वर्ग की संख्या उल्लेखनीय रही। युवाओं ने हजारों किताबें खरीदीं, जिससे साफ संदेश मिला कि पढ़ने की संस्कृति खत्म नहीं हुई है, बल्कि पढ़ने का तरीका बदल गया है। यह विचार लेखक, चिंतक और भारतीय शिक्षा बोर्ड के राष्ट्रीय संगठन महासचिव मुकुल कानिटकर ने समापन समारोह में व्यक्त किया। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (एनबीटी) इंडिया, महाराष्ट्र शासन और जीरो माइल यूथ फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में रेशीमबाग मैदान में आयोजित इस नौ दिवसीय महोत्सव का समापन बेहद प्रेरक और ऊर्जावान रहा। इस अवसर पर डॉ. समय बंसोड़ उपस्थित रहे तथा प्रो. मदन मोहन गोले की पुस्तक का विमोचन किया गया।

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युवा पीढ़ी को समझना सीखें: कानिटकर
कानिटकर ने युवाओं को लेकर प्रचलित धारणाओं पर आपत्ति जताते हुए कहा कि हम युवाओं को दोष देकर समाज को गलत दिशा में ले जा रहे हैं। “आज की पीढ़ी तेज प्रोसेसर जैसी है और हमें उनकी भाषा सीखनी चाहिए,” उन्होंने कहा। भारतीय ज्ञान परंपरा, विविधता और अध्यात्म पर बोलते हुए उन्होंने उपस्थित पाठकों से प्रतिदिन एक पृष्ठ लिखने का संकल्प लेने की अपील की। "केवल पाठक नहीं, लेखक बनिए," यह संदेश उनके उद्बोधन का मूल रहा। मंच पर जीरो माइल लिट फेस्टिवल के निदेशक प्रशांत कुकड़े, कल्याण देशपांडे तथा अन्य मान्यवर उपस्थित रहे।
 

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काशी-मथुरा की लड़ाई भी सफल होगी – एड. विष्णु शंकर जैन
इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन का संवाद कार्यक्रम भी हुआ, जिसे एड. नकुल साराफ ने संचालित किया। जैन ने कहा कि राम जन्मभूमि की जीत के बाद हिंदू समाज में विश्वास बढ़ा है और अब काशी-मथुरा की लड़ाई भी गति से आगे बढ़ रही है। धार्मिक परिवर्तन के बढ़ते खतरे पर चिंता जताते हुए उन्होंने जागरूक और एकजुट रहने का आह्वान किया। नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्य पद्धति की उन्होंने विशेष सराहना की। इस अवसर पर साधना उमलकर की अनंतरूपा और मधुरी सकुलकर की ध्येय साधनाचा वाटेवार पुस्तकों का विमोचन हुआ।जीवन में सकारात्मकता चुनें – दमयंती तांबे
 

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समापन सत्र में अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित दमयंती तांबे का साक्षात्कार भी हुआ। उन्होंने कहा कि जीवन में उतार–चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन नकारात्मकता पर केंद्रित रहने से जीवन कठिन हो जाता है। उनकी जीवन गाथा, जो 1971 युद्ध में लापता हुए अपने पति की प्रतीक्षा में बीते 50 वर्षों पर आधारित है, उपस्थित लोगों को भावुक कर गई। उनकी आत्मकथा द साइलेंट वॉरियर की लेखिका अम्बरिन जैदी ने इसे लिखने की कठिनाई साझा की और युवाओं से देश के शहीदों के परिवारों से जुड़ने की अपील की।