दिल्ली ब्लास्ट केस के बाद फिर विवादों में यूनिवर्सिटी
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एबी न्यूज़ नेटवर्क :
दिल्ली ब्लास्ट केस में नाम आने के बाद फरीदाबाद स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी (Al Falah University) एक बार फिर सुर्खियों में है। हाल ही में राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NAAC) ने इस यूनिवर्सिटी को फर्जी मान्यता दिखाने के आरोप में शो-कॉज नोटिस जारी किया है। परिषद ने आरोप लगाया है कि यूनिवर्सिटी ने अपनी वेबसाइट पर गलत जानकारी प्रकाशित की और जनता को यह दिखाने की कोशिश की कि उसे NAAC की मान्यता प्राप्त है। इससे पहले भी यह यूनिवर्सिटी ब्लास्ट केस में आरोपी रहे असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. उमर के कारण विवादों में आई थी।
NAAC का खुलासा: नहीं है कोई मान्यता
NAAC की ओर से भेजे गए नोटिस में स्पष्ट किया गया है कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी न तो परिषद से मान्यता प्राप्त है और न ही उसने Cycle-1 के लिए आवेदन किया है। इसके बावजूद यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर यह दावा किया गया है कि उसकी तीन संस्थाओं को ‘A ग्रेड’ दिया गया है। परिषद का कहना है कि यह कृत्य न केवल नियमों का उल्लंघन है बल्कि छात्रों और अभिभावकों को भ्रमित करने वाला भी है। अब NAAC ने यूनिवर्सिटी से इस पूरे मामले पर स्पष्टीकरण मांगा है और चेतावनी दी है कि जवाब संतोषजनक न होने पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।
फर्जी मान्यता दिखाना है गंभीर अपराध
NAAC यानी *National Assessment and Accreditation Council* भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने वाली शीर्ष संस्था है। किसी यूनिवर्सिटी की NAAC ग्रेडिंग उसके शिक्षण, शोध और बुनियादी ढांचे के स्तर को दर्शाती है। शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोई संस्था फर्जी मान्यता का दावा करती है, तो यह *धोखाधड़ी (Fraud)* की श्रेणी में आता है। इससे छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ता है और शिक्षा व्यवस्था की साख पर भी असर पड़ता है।
पहले भी रहा है विवादों में नाम
अल-फलाह यूनिवर्सिटी पहले भी कई विवादों में घिरी रही है। हाल ही में दिल्ली ब्लास्ट केस में मारा गया आरोपी डॉ. उमर इसी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत था। जांच एजेंसियों ने उसके आतंकी संगठनों से संबंध की पुष्टि की थी, जिसके बाद यूनिवर्सिटी की भूमिका पर कई सवाल उठे थे। अब NAAC की ताजा कार्रवाई से इस संस्था की विश्वसनीयता पर और प्रश्नचिन्ह लग गया है। शिक्षा क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि ऐसे मामलों पर सख्त निगरानी और पारदर्शिता आवश्यक है ताकि छात्रों के हितों की रक्षा की जा सके।