Image Source:(Internet)
एबी न्यूज़ नेटवर्क।
भारतीय सिनेमा की सबसे प्यारी प्रेम कहानियों में से एक, शाहरुख़ ख़ान और काजोल (Kajol) की क्लासिक फिल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (DDLJ) आज अपने 30वें साल में प्रवेश कर चुकी है। यह फिल्म सिर्फ़ एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है। 1995 में रिलीज़ हुई इस फिल्म ने अपने समय में ही दर्शकों का दिल जीत लिया था और तीन दशकों बाद भी यह नए-नए दर्शकों को आकर्षित कर रही है। दीवाली जैसे त्योहार पर, जब हर घर में रोशनी और खुशियों का माहौल होता है, DDLJ का संदेश और रोमांस और भी प्रासंगिक लगते हैं। काजोल ने *हिंदुस्तान टाइम्स* को दिए इंटरव्यू में कहा कि वह इस फिल्म का हिस्सा बनकर “वास्तव में विनम्र महसूस करती हैं” और कभी नहीं सोचा था कि यह फिल्म इतनी बड़ी विरासत छोड़ जाएगी। दर्शक इसे केवल मनोरंजन नहीं मानते, बल्कि अपने जीवन और प्रेम कहानी के अनुभव से जोड़ते हैं।
काजोल का विनम्र अनुभव
काजोल ने कहा, “हमें कभी नहीं लगा कि हम इतनी बड़ी विरासत छोड़ेंगे। हम बस एक अच्छी फिल्म बनाने की कोशिश कर रहे थे। आज इतने सालों बाद लोग इसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बना चुके हैं, यह मेरे लिए गर्व की बात नहीं, बल्कि विनम्रता का अनुभव है।” उन्होंने यह भी साझा किया कि कई लोग उनके पास आकर कहते हैं कि उन्होंने DDLJ देखकर प्यार किया और अपने बच्चों को भी यह फिल्म दिखाई ताकि वही अनुभव उन्हें भी मिले। यह दर्शाता है कि DDLJ सिर्फ़ फिल्म नहीं, बल्कि एक पीढ़ियों को जोड़ने वाली परंपरा बन गई है।
माराठा मंदिर में तीन दशकों की रिकॉर्ड रन
मुंबई के मराठा मंदिर में इस फिल्म की लगातार चलती हुई स्क्रीनिंग भारतीय सिनेमा का एक अनूठा रिकॉर्ड है। काजोल ने इस लगातार समर्थन के लिए दर्शकों का धन्यवाद करते हुए कहा, “अगर यह फिल्म आज भी मराठा मंदिर में चल रही है और भगवान की कृपा से आगे भी चलेगी, तो यह सिर्फ़ दर्शकों के प्यार और उनके जीवन का हिस्सा बनाने की वजह से है। हर दर्शक जिसने यह फिल्म देखी और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाया, उसने हमें भी अपने जीवन का हिस्सा बना दिया।”
क्या काजोल बदलना चाहती सिमरन में कुछ?
जब काजोल से पूछा गया कि क्या वह अपने आइकोनिक किरदार सिमरन में कुछ बदलना चाहेंगी, तो उन्होंने तुरंत कहा, “मैं कुछ नहीं बदलूंगी। मुझे इसकी जरूरत ही नहीं।” उन्होंने आगे समझाया, “यह फिल्म 30 साल पहले बनी थी और उस समय और परिस्थिति के लिए बिल्कुल सही थी। आज के परिदृश्य में इसे अलग तरीके से देखा जाएगा, लेकिन उस समय और संदर्भ में DDLJ वही होती जो वह आज है।” काजोल का यह संदेश बताता है कि DDLJ की जादुई कहानी समय और पीढ़ियों की कसौटी पर खरी उतरी है।