आरएसएस शताब्दी: सेवा और राष्ट्र निर्माण की परंपरा

    01-Oct-2025
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एबी न्यूज़ नेटवर्क।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना 27 सितंबर 1925 को डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में की थी। इसका उद्देश्य था समाज को संगठित करना, राष्ट्रभावना को प्रबल करना और भारतीय संस्कृति को आत्मसम्मान के साथ स्थापित करना। आज, जब संघ अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है, तब यह न केवल एक संगठन बल्कि करोड़ों स्वयंसेवकों के माध्यम से समाज सेवा, शिक्षा, संस्कार और राष्ट्र निर्माण का विशाल आंदोलन बन चुका है। संघ ने यह सिद्ध किया है कि संगठन शक्ति से समाज की अनेक समस्याओं का समाधान संभव है।
 
आपदा और संकट के समय सेवा
आरएसएस की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि उसने हर आपदा और संकट की घड़ी में समाज का साथ दिया। 1984 के सिख दंगों के दौरान जब हजारों लोग प्रभावित हुए, तब अनेक सिख परिवारों को स्वयंसेवकों ने अपने घरों में आश्रय दिया। प्राकृतिक आपदाओं में भी संघ ने हमेशा अग्रणी भूमिका निभाई है। चाहे 2013 की उत्तराखंड त्रासदी हो, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में आई बाढ़ हो या वायनाड की तबाही हर जगह स्वयंसेवक सबसे पहले राहत कार्यों में जुटे। कोविड-19 महामारी के दौरान भी संघ कार्यकर्ताओं ने भोजन वितरण, रक्तदान और स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर गांव-गांव तक जागरूकता फैलाने का कार्य किया।
 
समाज सुधार और सांस्कृतिक योगदान
आरएसएस ने केवल आपदाओं में सेवा ही नहीं दी, बल्कि समाज सुधार की दिशा में भी उल्लेखनीय कार्य किए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती जैसे संस्थानों के माध्यम से लाखों विद्यार्थियों को संस्कारयुक्त शिक्षा दी जा रही है। आदिवासी क्षेत्रों में वनवासी कल्याण आश्रम और महिला सशक्तिकरण के लिए सेवा भारती जैसे संगठनों ने जीवन स्तर बदलने में अहम योगदान दिया है। संघ हमेशा से भारतीय संस्कृति, परंपराओं और आध्यात्मिक धारा को सशक्त बनाने पर बल देता आया है। इसके संस्कार शिविर, शाखाएँ और प्रशिक्षण कार्यक्रम अनुशासन, नैतिकता और समाज सेवा की भावना को मजबूत करते हैं।
 
शताब्दी वर्ष और भविष्य की दिशा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरएसएस के शताब्दी समारोह में स्वयंसेवकों की सेवा भावना की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह संगठन राजनीति से परे समाज की निस्वार्थ सेवा करता है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी संघ की सादगी और अनुशासन से प्रभावित होकर इसकी सकारात्मक छवि को रेखांकित किया था। आज आरएसएस केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों में भी प्रवासी भारतीयों के बीच सांस्कृतिक जागरण का कार्य कर रहा है। शताब्दी वर्ष में प्रवेश करते हुए संघ यह संदेश देता है कि राष्ट्र की शक्ति समाज की एकता और सेवा भावना में निहित है। आने वाले वर्षों में भी आरएसएस समाज में जागरूकता, सेवा और संगठन शक्ति को और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध रहेगा।