रितिका मालू की गिरफ्तारी के मामले में दो न्यायाधीशों के 3 फैसले

11 Jul 2024 17:17:28
 
Ritika Malu arrest case
 (Image Source : Internet)
 
नागपुर :
नशे में मर्सिडीज कार चलाकर दो बेगुनाह युवकों को कुचल देने के मामले की आरोपी धनाढ्य व्यवसायी रितिका उर्फ रितु दिनेश मालू (39) की गिरफ्तारी के मामले में अब तक प्रथम श्रेणी न्याय दंडाधिकारी (जेएमएफसी) न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने तीन फैसले सुनाए हैं. तीनों फैसले तहसील पुलिस के खिलाफ सुनाए गए हैं. इसकी वजह से पुलिस की झोली अभी भी खाली क्यों है? पर हर तरफ से शोध करने की आवश्यकता है.
 
तहसील पुलिस को सर्वप्रथम न्यायाधीश विशाल देशमुख ने राहत देने से इनकार किया. मालू के विरुद्ध शुरुआत में 25 फरवरी 2024 को विविध असंज्ञेय धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. इस पर मालू को उसी दिन फौजदारी प्रक्रिया संहिता के धारा 437 के तहत जमानत मिली थी. इस बीच, मालू के रक्त में अल्कोहल पाए जाने के बाद पुलिस ने दो मार्च को एफआईआर में भादंसं की धारा 2 मार्च को एफआईआर में भादंसं की धारा 304 (सदोष मनुष्यवध) और मोटर वाहन कानून की धारा 185 (शराब के नशे में वाहन चलाना) आदि संज्ञेय धाराओं को मामले में शामिल किया. सात मार्च जेएमएफसी न्यायालय में फौजदारी प्रक्रिया संहिता की धारा 437 (5) के तहत आवेदन दाखिल कर मालू की जमानत रद्द करने और उनको गिरफ्तार करने की अनुमति देने की मांग की थी.
 
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न्यायाधीश विशाल देशमुख ने तीन अप्रैल को यह आवेदन खारिज कर दिया. उन्होंने साफ किया कि इस मामले में जमानत रद्द करने के लिए फौजदारी प्रक्रिया संहिता की धारा 437 (5) के अधिकार का उपयोग नहीं किया जा सकता. आरोपी को धारा 4 :37(1) व 437(2) के तहत गैरजमानती मामलों में जमानत मिलने पर ही इस अधिकार का उपयोग किया जा सकता है.
 
इसी प्रकार धारा 439(2) के तहत जमानत पा चुके आरोपी को गिरफ्तार करने के निर्देश देने के अधिकार उच्च न्यायालय और सत्र न्यायालय को हैं. उस वक्त मालू को सत्र न्यायालय द्वारा अस्थायी गिरफ्तारी पूर्व जमानत दी गई थी, इसका ध्यान भी पुलिस का आवेदन खारिज करने के दौरान रखा गया. इसके बाद के दो फैसले न्यायाधीश ए. वी. खेडकर-गराड ने सुनाए हैं. सत्र न्यायालय ने 24 मई और उच्च न्यायालय ने 26 जून को गिरफ्तारी पूर्व जमानत देने से इनकार कर दिए जाने से मालू ने एक जुलाई को तहसील थाने में आत्मसमर्पण किया था. इस पर पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर पीसीआर के लिए दो जुलाई को न्यायाधीश खेडकर गराड के समक्ष हाजिर किया था. न्यायाधीश ने मालू की गिरफ्तारी अवैध करार देकर उनको रिहा करने का आदेश दिया. उन्होंने कहा कि नए सिरे से जोड़ी गईं संज्ञेय धाराओं के तहत गिरफ्तारी के लिए पुलिस को न्यायालय की अनुमति हासिल करना अनिवार्य था.
 
इसके बाद पुलिस ने मालू की गिरफ्तारी की अनुमति की मांग का आवेदन दायर किया था. लेकिन नौ जुलाई को न्यायाधीश खेडकर-गराड ने जेएमएफसी न्यायालय को अपने खुद के फैसले पर पुनः विचार करने का अधिकार नहीं है, बताकर वह आवेदन खारिज कर दिया. पुलिस ने पहले सात मार्च के आवेदन में समान मांग की थी उस आवेदन को न्यायाधीश विशाल देशमुख ने खारिज किया था.
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