अब चुनावी बॉन्ड ‘असंवैधानिक’: ॲड आकाश सपेलकर

23 Feb 2024 16:40:13

Adv Akash Sapelkar
 
 
नागपुर। 
सर्वोच्च अदालत ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक और मनमाना करार दिया है। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 19 (1ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना के अधिकार का उल्लंघन माना है। ये बॉन्ड चुनावी पारदर्शिता और मतदाता के अधिकार के भी खिलाफ हैं। मतदाता को राजनीतिक, चुनावी चंदे को जानने का अधिकार है। इनसे यह पता नहीं चलता कि चुनावी बॉन्ड क्यों खरीदे गए? एक निश्चित राजनीतिक दल को ही चंदा क्यों दिया गया? इनसे स्वतंत्र चुनावों की निष्पक्षता भी खतरे में पड़ जाती है। नतीजतन पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने चुनावी बॉन्ड पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाने का फैसला सुनाया है। अब भारतीय स्टेट बैंक को 12 अप्रैल, 2019 से आज तक बिके, भुनाए गए बॉन्ड्स का संपूर्ण ब्योरा 6 मार्च तक चुनाव आयोग को देना है। आयोग 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करेगा कि कितने बॉन्ड खरीदे गए और मूल्य कितना था? व्यक्ति, समूह और कॉरपोरेट कंपनी के एक-एक नाम का भी खुलासा करना होगा। चुनावी चंदे को लेकर जो गोपनीयता बरती जा रही थी अथवा दानदाता उनकी पहचान को छिपाने का आग्रह करते रहे थे, अब कुछ भी गोपनीय नहीं रहेगा। सभी बेनकाब होंगे। देश में आम चुनाव से करीब 100 दिन पहले संविधान पीठ का यह फैसला बेहद कड़ा और ऐतिहासिक है। दरअसल किसी भी दल को यह मुगालता नहीं पालना चाहिए कि संविधान पीठ ने भ्रष्टाचार के किसी गुप्त रहस्य को बेनकाब किया है। भ्रष्ट दानदाताओं और सरकार के बीच चंदे का कोई खेल जारी रहा है?
 
न्यायिक पीठ ने किसी भ्रष्ट गतिविधि का रहस्योद्घाटन भी नहीं किया है, लेकिन चुनावी चंदे की गोपनीयता पर सवाल किए हैं। 2017 के बजट में चुनावी बॉन्ड की घोषणा की गई थी और 2018 में इस योजना को लागू किया गया। इससे पहले चुनावी चंदे की व्यवस्था यह थी कि 20,000 रुपए तक का चंदा गोपनीय रखा जा सकता था। वह चंदा नकदी भी दे सकते थे अथवा चेक के जरिए भी दिया जाता था। दानदाताओं के नाम और चंदे की राशि सार्वजनिक करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं थी। उस दौर में बहुत-सा काला धन ‘सफेद’ किया गया होगा! अब संविधान पीठ ने सार्वजनिक सूचना और खुलासे को लोकतंत्र की बुनियाद तथा समानता माना है, तो देश यह न्यायिक फैसला मानने को बाध्य है। अब यह खुलासा भी हुआ है कि तृणमूल कांग्रेस को करीब 97 फीसदी चंदा ‘अज्ञात स्रोतों’ से प्राप्त हुआ है, जबकि कांग्रेस को करीब 72 फीसदी और भाजपा को 60 फीसदी से अधिक चंदा ‘अज्ञात स्रोतों’ से मिला है। यह बेहद अहम सवाल है कि ये ‘अज्ञात स्रोत’ कौन हैं? क्या ये सूचना के अधिकार कानून की परिधि में हैं? चुनावी बॉन्ड से पता चला है कि 2018-23 के दौरान भाजपा को 6566 करोड़ रुपए का चंदा मिला है, जबकि कांग्रेस को 1123 करोड़, तृणमूल को 1092 करोड़ और बीजद को 774 करोड़ रुपए का चंदा मिला है। गौरतलब है कि जब कांग्रेस सत्ता में थी, तो उसे सर्वाधिक चंदा मिला करता था।
 
कभी, किसी अदालत ने सवाल नहीं किया और न ही उसे ‘मनी लॉन्ड्रिंग’ करार दिया। कमोबेश आज यह आंकड़ा संसद में भी रखा जा सका है कि फरवरी, 2024 तक 16,518 करोड़ रुपए के बॉन्ड खरीदे गए। चंदा कम है या अधिक है, लेकिन क्षेत्रीय दलों को भी मोटा चंदा मिला है और सभी ने उसे स्वीकार भी किया है। दरअसल इस फैसले का बुनियादी मकसद यह है कि चुनावी चंदा सार्वजनिक होना चाहिए। सवाल है कि 1950 से 2024 तक की व्यवस्था के दौरान सर्वोच्च अदालत का ऐसा फैसला क्यों नहीं आया कि चंदा सार्वजनिक होना चाहिए। यह भी यथार्थ सत्य है कि आम आदमी अपनी रोजाना ‘थाली’ के लिए संघर्ष करता रहा है। उसकी दिलचस्पी इस बात में नहीं कि किसने किसको कितना चंदा दिया।
Powered By Sangraha 9.0