नागपुर के स्वामीनारायण मंदिर में 1500 से अधिक व्यंजनों के साथ मनाया गया अन्नकूट उत्सव

03 Nov 2024 16:40:29
Annakut festival
  
नागपुर:
वाठोडा क्षेत्र स्थित बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर में शनिवार को 1500 से अधिक विविध व्यंजनों का अन्नकूट उत्सव (Annakut festival) बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। यह पर्व दीपोत्सव समारोह का एक अहम हिस्सा है। बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था ने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा 5500 वर्ष पूर्व शुरू की गई परंपरा को आगे बढ़ाते हुए दुनियाभर के 1800 से अधिक मंदिरों में अन्नकूट उत्सव मनाया है।
 
अन्नकूट का अर्थ होता है "अन्न का पर्वत"। बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिरों और हरि मंदिरों में इसे विशेष भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है, जहां भगवान को सैकड़ों प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। लंदन स्थित स्वामीनारायण मंदिर में अन्नकूट उत्सव में 2200 से 2500 व्यंजनों का भव्य आयोजन होता है, जिसकी गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है।
 
Annakut festival
 
नागपुर के स्वामीनारायण मंदिर में पिछले एक महीने में संतों और भक्तों द्वारा भक्ति-भाव से तैयार किए गए 1500 से अधिक व्यंजन भगवान को अर्पित किए गए। इस आयोजन को सफल बनाने के लिए 300 से अधिक स्वयंसेवकों ने सहयोग दिया। उत्सव में 3000 आमंत्रित अतिथियों सहित 20,000 से अधिक श्रद्धालु उपस्थित हुए, जिससे आयोजन स्थल पर भव्यता और भक्तिमय माहौल का संचार हो गया।
 
श्रीकृष्ण और छप्पन भोग की कथा
अन्नकूट उत्सव का संबंध भगवान श्रीकृष्ण की उस लीला से भी है, जिसमें उन्होंने इंद्र के प्रकोप से अपने भक्तों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था। मान्यता है कि इस दौरान श्रीकृष्ण ने सात दिनों तक न तो भोजन किया और न ही जल ग्रहण किया। जब आठवें दिन इंद्र का प्रकोप समाप्त हुआ और वर्षा थम गई, तो श्रीकृष्ण ने ग्रामीणों को सुरक्षित उनके घर लौटने का संदेश दिया।
 
श्रीकृष्ण के इस तप को देखकर गांव के लोगों और माता यशोदा ने सात दिनों में आठ पहर, यानी 56 प्रकार के व्यंजन तैयार कर श्रीकृष्ण को अर्पित किए। तभी से यह परंपरा बन गई कि भक्त अपनी श्रद्धा से भगवान को छप्पन भोग अर्पित करते हैं। इस कथा के साथ अन्नकूट उत्सव भी जुड़ा हुआ है, जिसमें श्रद्धालु भगवान को भोग अर्पित कर अपनी भक्ति प्रदर्शित करते हैं।
 
नागपुर में आयोजित अन्नकूट उत्सव में श्रद्धालुओं का अद्भुत उत्साह देखने को मिला, जिसमें उन्होंने सामूहिक सेवा और भक्ति के माध्यम से भगवान के प्रति अपनी आस्था प्रकट की। यह आयोजन भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मिलन स्थल बन गया, जिसमें भक्ति, सेवा और समर्पण की भावना सर्वोपरि रही।
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