लक्ष्मी पूजा और दिवाली : एक संपूर्ण पर्व की महत्ता और परंपराएं

    01-Nov-2024
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laxmi puja and diwali
(Image Source : Internet/ Representative)

AB News Network : भारत में मनाए जाने वाले पर्वों में से दिवाली सबसे प्रमुख और विशेष पर्व माना जाता है। दिवाली को "रोशनी का त्योहार" कहा जाता है, जो अंधकार को मिटाकर ज्ञान, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। इस दिन लोग अपने घरों और स्थानों को दीपों से सजाते हैं और लक्ष्मी पूजा करते हैं ताकि मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो और घर में सुख-समृद्धि का वास हो।

दिवाली का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
दिवाली का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और यह पर्व विभिन्न पौराणिक कहानियों से जुड़ा हुआ है। सबसे प्रमुख कथा भगवान राम की अयोध्या वापसी की है। माना जाता है कि जब भगवान राम चौदह वर्षों का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे, तो अयोध्या वासियों ने उनका स्वागत दीप जलाकर किया। उसी दिन से दिवाली का पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है। इसके अतिरिक्त, यह भी माना जाता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था और लोगों को अत्याचार से मुक्त किया था।

लक्ष्मी पूजा: महत्ता और विधि
लक्ष्मी पूजा दिवाली का मुख्य अंग है। मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी, जो धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं, अपने भक्तों के घरों में प्रवेश करती हैं। इसलिए, लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं और उसे दीपों और रंगोली से सजाते हैं ताकि देवी लक्ष्मी का स्वागत भव्यता से हो सके। लक्ष्मी पूजा के दिन विशेष विधान से देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इस पूजन में विशेष रूप से श्री सूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र और लक्ष्मी अष्टकम का पाठ किया जाता है। इस दिन गणेश जी की भी पूजा होती है, क्योंकि वे विघ्नहर्ता हैं और हर कार्य को सफल बनाते हैं।

लक्ष्मी पूजा की विधि

1. सफाई और सजावट: पूजा से पहले घर की पूरी सफाई की जाती है ताकि देवी लक्ष्मी का स्वागत शुद्धता और पवित्रता के साथ हो सके।
2. कलश स्थापना: एक कलश में पानी, सुपारी, रोली, चावल डालकर उसे स्थापित किया जाता है, जो देवी लक्ष्मी का प्रतीक होता है।
3. लक्ष्मी-गणेश स्थापना: लक्ष्मी और गणेश की प्रतिमा या चित्र को एक स्वच्छ स्थान पर स्थापित किया जाता है।
4. आचमन और शुद्धिकरण: पूजा की शुरुआत से पहले हाथ, पैर धोकर पवित्रता का ध्यान रखा जाता है।
5. आरती और भोग: पूजा के अंत में आरती की जाती है और प्रसाद के रूप में मिठाई का भोग लगाया जाता है।

दीयों की रोशनी का महत्व
दिवाली के दौरान जलाए गए दीपक न केवल रोशनी का प्रतीक हैं बल्कि अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक भी हैं। माना जाता है कि दीप जलाने से नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। घर के हर कोने में दीपक जलाने की परंपरा है ताकि समस्त अंधकार मिट सके और ज्ञान व समृद्धि का आगमन हो।

दिवाली के अन्य अंग
लक्ष्मी पूजा के अलावा दिवाली के अन्य महत्वपूर्ण अंग भी हैं, जैसे कि धनतेरस, नरक चतुर्दशी, गोवर्धन पूजा और भाई दूज। इन दिनों में विशेष प्रकार के पूजन और रीति-रिवाज होते हैं, जो विभिन्न भावनाओं और कृतज्ञता को दर्शाते हैं। जैसे धनतेरस के दिन धन्वंतरि देवता की पूजा की जाती है और स्वास्थ्य के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है।

आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
दिवाली न केवल धार्मिक और पौराणिक महत्व रखती है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन लोग आपसी विवाद भूलकर एक-दूसरे के साथ प्रेम और सौहार्द्र से मिलते हैं। यह पर्व सामुदायिक सौहार्द्र, भाईचारे और मिलजुलकर खुशियां मनाने का प्रतीक है।

निष्कर्ष
लक्ष्मी पूजा और दिवाली का पर्व एक ऐसा अवसर है जो भारतीय संस्कृति, परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं को जीवंत बनाए रखता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी अंधकारमयी स्थितियां क्यों न हों, हमें सदैव ज्ञान, आशा और सकारात्मकता की ओर बढ़ना चाहिए। इस दिवाली, हम सभी अपने जीवन में न केवल आर्थिक समृद्धि बल्कि आत्मिक समृद्धि का भी स्वागत करें।


और अभिजीत भारत की ओर से आप सभी को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं!