काटोल : श्री शिवाजी इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन अमरावती, नबीरा कॉलेज काटोल और महात्मा फुले कॉलेज ऑफ आर्ट्स, कॉमर्स और सीतारामजी चौधरी साइंस कॉलेज वरूड में डॉ. पंजाबराव उपाख्य की शताब्दी रजत जयंती के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। भाऊसाहेब देशमुख श्री शिवाजी शिक्षा संस्थान अमरावती ने पूरे महाराष्ट्र में 125 व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया है। उनमें से एक नबीरा कॉलेज में पूरी की गई। व्याख्यान माला की शुरुआत राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज एवं डाॅ. पंजाबराव देशमुख की मूर्ति की पूजा करने के बाद की गई।
मुख्य अतिथि के अभिनंदन समारोह के बाद महात्मा फुले महाविद्यालय के डाॅ. पंजाबराव देशमुख की तस्वीर और उनके जीवन पर आधारित दस संदर्भ पुस्तकों का नबीरा कॉलेज, काटोल के पुस्तकालय में दौरा किया। कार्यक्रम की शुरुआत महात्मा फुले कॉलेज वरूड के प्राचार्य डॉ. जी.एन. चौधरी ने किया। उनके द्वारा डॉ. शिवाजी शिक्षा संस्थान की स्थापना की गई। उन्होंने कहा कि पंजाबराव देशमुख के पास सबसे बड़ी हिस्सेदारी थी। साथ ही, उन्होंने पूरे विदर्भ में श्री शिवाजी शिक्षण संस्थान के माध्यम से आम लोगों के जीवन में काफी परिवर्तन लाया। कृषि और राजनीतिक क्षेत्र में भूमिका के कारण सामाजिक क्रांति भी लाई।
मुख्य वक्ता डाॅ. चतुर्भुज कदम रहे, परिचयात्मक भाषण प्रो. नीलेश जाधव द्वारा किया गया। डॉ. पंजाबराव देशमुख: युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं इस आशय के विचार मान्यवरों ने व्यक्त किए। डॉ. चतुर्भुज कदम ने भाऊसाहेब देशमुख के बचपन से लेकर संपूर्ण जीवन विषय पर बहुत ही सरल भाषा में उदाहरणों के साथ अपनी विद्वत्तापूर्ण चर्चा की जो विद्यार्थियों को प्रेरणादायक लगेगी। यदि छात्र पंजाबराव देशमुख को एक प्रेरणादायक रोल मॉडल के रूप में मान लेते हैं तो उनका जीवन निश्चित रूप से सुंदर होगा।
इसके लिए दृढ़ संकल्प, दृढ़ता, कड़ी मेहनत और परिस्थितियों पर काबू पाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए। इतना ही नहीं उच्च शिक्षा प्राप्त कर उसका उपयोग समाज और भारत देश के उत्थान लिए करना चाहिए। सशक्त भारत के लिए ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को आत्मसात करना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि तभी हमारे बीच से आधुनिक भाऊसाहब निकलेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता नबीरा कॉलेज काटोल के प्राचार्य ने की। मान्यवरों में सुनील कुमार नवीन, मुख्य अतिथि प्राचार्य डाॅ. जीएन चौधरी, उप प्राचार्य डाॅ. विकास बार्स का समावेश रहा। कार्यक्रम का संचालन प्रो. नीलेश जाधव ने किया। प्रो. हरीश किनकर ने धन्यवाद ज्ञापित किया।