Nagpur : 28 सितंबर मिलादुन्नबी के अवसर पर विशेष!

    26-Sep-2023
Total Views |
  • हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नैतिकताएं और युवा पीढ़ी
  • सचरित्र संस्कारों पर गर्व करने वाली वंशावली का संबंध है पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सअ़व की जीवन शैली
Nagpur Special on the occasion of 28 September Miladunnabi - Abhijeet Bharat
 
इस्लाम अपने मानने वालों को अच्छे संस्कारों को अपनाने की शिक्षा देता है साथ ही उन्हें बुरी नैतिकताएं अपनाने से रोकता भी है। इस्लाम में अच्छे संस्कारों वाला व्यक्ति अत्यधिक प्रिय है। अगर किसी युवा में किसी भी प्रकार का नैतिक बिगाड़ हो तो उसे यथाशीघ्र सुधारने की कोशिश करना चाहिए। अच्छी नैतिकताओं से अति उत्तम वातावरण बनता है। घर परिवार से लेकर समाज में शांति और सुरक्षा का सृजन होता है, समाज दिन प्रतिदिन समृद्ध और विकसित होता है।
 
अंतिम पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अच्छी नैतिकताओं के महान महत्वों और गुणों का वर्णन किया है। अबू दाऊद नामक हदीस ग्रंथ में एक हदीस के अनुसार आप सअ़व ने इरशाद फ़रमाया कि "क़ियामत के दिन बंदे के तराज़ू में सबसे भारी चीज़ अच्छी नैतिकताएं होंगी"। एक अन्य हदीस में है कि "मोमिन (आस्तिक) अच्छे आचरण के कारण रोज़ा रखने वाले और रात भर इबादत करने वाले दर्जे को प्राप्त कर लेता है"।
 
सामान्य तौर पर व्यक्ति अपनी उम्र के तीन पड़ावों से गुज़रता है बचपन, जवानी और बुढ़ापा । सबसे महत्वपूर्ण जवानी की उम्र होती है। जवानी में युवा हर एक कामों को बड़े अच्छे अंदाज़ से करने की क्षमता रखते हैं। इस प्रकार जिस समाज में युवाओं की सेवाएं प्रेम भावनाओं के साथ अंजाम दी जाती हों उसके विकास को रोक पाना असंभव हो जाता है। यही कारण है कि विश्व में युवाओं को विशेष महत्व दिया जाता है। इस्लाम ने भी उनकी क़द्र करते हुए जवानी को अल्लाह की सबसे अनमोल नेमत से नवाज़ा है , उसे सही रास्ते पर चलने की हिदायत दी है । इस तारतम्य में पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पूरी पवित्र ज़िंदगी और शिक्षाएं सभी युवाओं के लिए उचित मार्गदर्शन की हैसियत रखती हैं।
 
युवा शक्ति की क़द्र करते हुए जब कभी किसी अभियान पर भेजने की आवश्यकता होती तो उस के लिए हज़रत मोहम्मद सअ़व अक्सर युवाओं का चयन करते थे। आप सअ़व ने "सर्व शिक्षा अभियान" के तहत शिक्षा पर बहुत ज़ोर दिया था । उसके महत्व को ध्यान में रखते हुए जब मदीना में शिक्षा की आवश्यकता जान पड़ी तो एक शिक्षक के रूप में हज़रत मुसैब बिन उमर रज़ि को वहां भेजा, उस समय वे बहुत युवा थे। न्याय की स्थापना में भी आप सअ़व ने अहम भूमिका निभाई थी। जब यमन में एक क़ाज़ी अर्थात न्यायाधीश की आवश्यकता महसूस हुई तो आप सअ़व ने हज़रत अली रज़ि को वहां भेजा, इस समय वे युवावस्था में थे । इस संबंध में हज़रत अली रज़ि स्वयं कहते हैं कि जब मैं जवान था तो अल्लाह के रसूल हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे यमन की ओर भेजा तो मैं जवान था।
 
मैंने निवेदन किया कि ऐ अल्लाह के दूत आप मुझे यमन वालों में न्याय करने के लिए भेज रहे हैं और मैं नौजवान हूं। मुझे नहीं पता न्याय किस प्रकार किया जाता है। हज़रत अ़ली रज़ि कहते हैं कि यह सुनकर आप सअ़व ने मेरे सीने पर अपना हाथ मारा और फिर यह दुआ दी कि "ऐ अल्लाह इसके दिल को हिदायत अता फ़रमा और इसकी ज़ुबान में ताक़त दे"। वे कहते हैं कि इसके बाद कभी मुझे दो लोगों के बीच फ़ैसला करने में कोई संदेह नहीं हुआ।
 
आज हमारे युवा नैतिकताओं की ज़िम्मेदारियों से दूर जाते हुए दिखाई दे रहे हैंं , इसके अलावा फिर इबादतों के लिए बुढ़ापे का इंतज़ार करते हैं । जबकि जवानी अल्लाह की ओर से एक विशेष नेमत है। जितना अधिक संभव हो इस आयु को अल्लाह की आज्ञाकारिता में लगाना चाहिए। इसकी अहमियत पर प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद सअ़व ने एक समय एक युवा व्यक्ति को सदुपदेश देते हुए कहा कि "पांच चीज़ों को पांच चीज़ों से पहले क़द्र के क़ाबिल समझो , अपनी जवानी को अपने बुढ़ापे से पहले, अपने स्वास्थ्य को अपनी बीमारी से पहले, अपने धन को गरीबी से पहले, अपने आराम को व्यस्तता से पहले और अपने ज़िंदगी को अपनी मौत से पहले" । तात्पर्य यह कि युवा ही राष्ट्र या क़ौम के शिक्षक , उसके क़ाज़ी अर्थात न्यायाधीश तथा उसके नेता और रहनुमा होते हैं।
 
युवाओं के नैतिक गुणों को नाश करने वाले न जाने कितनी बुराईयों से लेस होकर कुमार्गों को दिखा रहे हैं उनसे बचकर निकलना टेढ़ी खीर है। इसलिए युवाओं के लिए वर्तमान समय बहुत जोख़िम भरा और चिंतनीय है । यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह दौर "दज्जाली फ़ित्नों" से बचने के लिए परीक्षित दौर है। । शराब हो कि नशीली वस्तुएं , व्याभिचार के अड्डे हों कि सट्टेबाजी के बाज़ार, साहूकारी और लूटपाट जैसे अनगिनत क्षेत्र साधारण व्यक्तित्व के लिए विनाशकारी के माध्यम हैं , जो युवाओं को अंधकारमय जीवन की ओर इशारा करते हैं।
 
अंधकारमय जीवन उसे कहा जाता है जिसमें बदले की भावनाएं और लोग एक दूसरों के ख़ून के प्यासे बने बैठे होते हैं । ऐसा समय पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सअ़व के पूर्व अ़रब प्रायद्वीप में आम हो गया था । उस समय असमानता, ग़ुलामी, आर्थिक शोषण , आर्थिक अस्थिरता , महिलाओं के प्रति उत्पीड़न और उन पर भयानक अत्याचार ढाए जाते थे, लड़कियों को जीवित गाड़ दिया जाता था आदि ये ऐसे कृत्य थे जिन्हें सुनकर कलेजा कांप उठता है , इन कृत्यों ने इन्सानियत की सीमाओं को पार कर दिया था। मानवता ने आत्महत्या की तय्यारी भी कर ली थी । ऐसी परिस्थितियों में पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सअ़व के अ़ज़ीमुश्शान दौर की याद ताज़ा करने से मालूम होता है कि उन्होंने अ़रब के रेगिस्तान में सिर्फ़ 23 वर्षों के अरसे में ऐसी क्रांति बरपा की थी कि अ़रब प्रायद्वीप की काया ही पलट पलट गई थी। इतिहास की दृष्टि से यह क्रांति मानव इतिहास की सबसे परिपूर्ण और सबसे तेज़ क्रांति का समय कहलाता है। प्यारे नबी रहमतुललिल आलमीन हज़रत मोहम्मद सअ़व की जवानी में किए गए अनथक प्रयासों का यह जीता जागता परिणाम था । इसने पूरी मानवता को प्रभावित कर दिया था। उसने अन्धकार को मिटा दिया था, व्यक्तित्व , संस्कृतियां चमक उठीं थीं तथा ज़ुल्म और ग़रीबी का अंधेरा छट गया था। अ़रब प्रायद्वीप की सभ्यता चमक गई थी, उसके रीति-रिवाज और सियासत बदल गई थी, इंसान नरम सरल दिल हो गये थे , उनके सोचने और व्यवहार के तरीके बदल गए थे ।‌इस संबंध में अल्लाह सर्वशक्तिमान पवित्र क़ुरआन सुरह अहज़ाब में 45 और 46 पंक्तियों में कहता है कि "ऐ नबी! हमने तुमको साक्षी और शुभ सूचना देनेवाला और सचेत करनेवाला बनाकर भेजा है। और अल्लाह की अनुज्ञा से उसकी ओर बुलानेवाला और प्रकाशमान प्रदीप बनाकर"।
 
आज दुनिया स्वतंत्रता , सभ्यता महिलाओं और मानव अधिकार , शैक्षणिक योग्यता, ऐसी बुराइयां जिनसे समाज नफ़रत करता है, जाति और रंग भेद समाप्त कर समानता तथा सचरित्र संस्कार लाने के लिए जिन मूल्यों की बात करती है तथा जिन पर वह गर्व करती है इन सभी गुणों का स्रोत तथा वंशावली पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिलती है।
 
दूसरे पहलू पर नज़र डालें तो मालूम होता कि विश्व में जहां अंधेरा है वहां तक आप सअ़व की शिक्षाएं नहीं पहुंचीं है वे आप सअ़व की शिक्षाओं, संदेशों का इंतज़ार कर रही हैं । पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सअ़व की शिक्षाओं पर अमल करते हुए उन्हें वहां तक पहुंचाना और उस अंधेरे को प्रकाशवान करना "उम्मते मुहम्मदिया" की ज़िम्मेदारी है।
 
पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने युवाओं को नसीहत दी कि "उनके लिए क़ियामत अर्थात न्याय के दिन अ़र्श की छाया होगी बशर्ते कि युवावस्था में इबादत की हो"। अतः युवाओं को अपनी युवावस्था की क़द्र और उसके महत्व को समझना चाहिए । इस डगर पर आते ही पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सअ़व की नैतिकताओं और व्यवहारों को अपनाने का प्रयास करना चाहिए। पैग़ंबर मोहम्मद सअ़व की तरह विनम्रता और शर्म हया का गुण और इबादत की भावना के साथ मां बाप , वृद्धों, भाई बहनों का आदर, बच्चों के साथ दया और नम्रता से पेश आना , अतिथि सम्मान , अनाथों , बेवाओं की सहायता, समाज सेवा, सदा सच बोलने और वादा निभाने की आदत , किसी की अमानत में ख़्यानत न करना , गुस्सा आने पर ख़ुद पर नियंत्रण रखना, फिजूलखर्ची से बचना आदि पैग़ंबर मोहम्मद सअ़व के महत्वपूर्ण अनमोल , अपरम्पार उदाहरण और नैतिकताओं से भरी उनकी हदीसें और ज़िन्दगी जो प्रकाशवान की धरोहर हैं , युवाओं के लिए मार्गदर्शक बन सकती हैं , यदि युवा उन्हें अपनाने का संकल्प लें तो वे दिन दूर नहीं जिनसे समाज के हर एक व्यक्ति को सुख चैन नसीब हो सकता है बल्कि उनका मान सम्मान बढ़ सकता है और तो और समाज की नैतिकताओं के तहत वेश्यालय, अनाथालय, वृद्ध आश्रम धराशाई हो कर मुंह के बल गिर सकते हैं।
 
डॉ एम ए रशीद,
नागपुर