'तरसोद' के गणेश भगवान क्यों है खास? जाने...

    03-Sep-2022
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Amche Bappa 2022
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जलगांव: तरसोद, नसीराबाद व मुरार खेड़ा (उजाडगांव) इन तीनों गांव के सीमा के आगे तरसोद के सीमा में यह पुरातन गणपति मंदिर स्थित है। श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होने के कारण यह मंदिर प्रसिद्ध है। ऐतिहासिक अभिलेखों और प्राचीन स्मारकों के लिए राज्य बोर्ड के सदस्य (State Board for Historical Records and Ancient Monuments Members), इतिहास शोधकर्ता काले, दिनांक 9 मार्च, 1958 को तरसोद ग्राम पंचायत के अभ्यास पुस्तिका में गणपति मंदिर के पुरातन होने की बात लिखी है। यह मंदिर ई. स.1662 में मुरारखेडे के मोरेश्वर हनमंत देशमुख के द्वारा बनवाया गया है।
 
माना जाता है तरसोद तालुका का गणपति मंदिर सिद्ध पुरुषों के पदचिन्हों से पावन हो चुका हैं। यह मंदिर इतिहास काल से प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि अपनी लड़ाई से पहले पेशवा और मराठा सरदार इस मंदिर में आकर दर्शन करके सफल होने की मनोकामना करते थे।
 
'इन' सिद्ध पुरुषों के है पदचिन्ह
 
यहां कई सिद्ध पुरुष दर्शन करने आ चुके है जिनमें गोविंद बर्वे महाराज, आंनदी देव के नरसिंह सरस्वती महाराज, नशिराबाद झिपरू अण्णा महाराज शामिल है। शेगांव के गजानन महाराज जब झिपरू अण्णा महाराज से जब मिलने आते थे तब दोनों मंदिर में आते थे। जप-तप, होम हवन, अथर्वशीर्ष के हजार साल के चक्र और सिद्ध पुरूषों के पदचिन्ह से पावन हुई यह भूमि है। मंदिर के सामने वट, इमली के बड़े-बड़े पुराने पेड़ है। मंदिर के पीछे एक कुआं है जिसमें सीढ़ियां डूबी हुई है।
 
तरसोद फाटा जलगांव से पांच किमी दूर है। इस कांटे से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर पेशवा युग के गणराया का जागृत तीर्थ है। संकष्टी चतुर्थी, विनायक चतुर्थी, अंगारकी चतुर्थी और गणेशोत्सव पर जलगांव जिले भर से श्रद्धालु यहां आते हैं। गणपति मंदिर का द्वार बहुत छोटा है। इसलिए भक्तों को मंदिर के दर्शन करने के लिए झुकना पड़ता है। भगवान गणेश की मूर्ति भव्य और तेजस्वी है। जलगांव में जो भी चुनाव हो या अभियान यहां सबसे पहले नारियल चढ़ाया जाता है। जिले के नवविवाहित जोड़े तरसोद के गणेश भगवान के दर्शन करके अपना जीवन शुरू करते है। गांव के बाहर के परिसर में यह भगवान गणेश का भव्य मंदिर स्थित है।
 

Amche Bappa 2022 
                                                                                                                                                                                                           
 
शिरडी के साईबाबा, शेगांव के गजानन महाराज और नसीराबाद के परम पूज्य झिपरू अण्णा, तीन महाविभूति नसीराबाद से दो किमी पश्चिम दूरी में विशाल इमली के पेड़ के नीचे गणपति मंदिर के बगल में तरसोद के गणराया विराजमान है। इसका एक रूप शेगांव के गजानन महाराज मंदिर में पाया जा सकता है।
 
नसीराबाद से श्रद्धालु संकष्टी चतुर्थी को पद्मालय में आमोद और प्रमोद गणराया के दर्शन के लिए जाया करते थे। उस समय पूज्य श्री गोविंद महाराज वहां रहा करते थे। उन्होंने पांडव काल के दौरान पद्मालय में गणपति मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। एक दिन इन सिद्ध पुरुषों ने नसीराबाद के भक्तों को बताया कि पद्मालय में मंदिर का पूरा नाम नसीराबाद के पास 'तरसोद' गांव में है। उसके बाद हर माह संकष्टी चतुर्थी को तरसोद में गणराया की पूजा करने के लिए क्षेत्र के श्रद्धालु आने लगे। किंवदंती है कि कुछ दिनों के बाद, पूज्य श्री गोविंद महाराज ने स्वयं तरसोद के भगवान गणेश की महापूजा की।
 

Amche Bappa 2022 
 
 
जब वे टोही के लिए उत्तर की ओर जा रहे थे तो मराठा सैनिक इस क्षेत्र में विश्राम के लिए रुके थे। उस समय तरसोद-नसीराबाद मार्ग पर एक छोटा सा गणेश मंदिर था। मन्यारखेडा, भदली बू.., खेड़ी और नसीराबाद क्षेत्रों से भक्त भगवान के दर्शन के लिए आते थे। उस समय यह क्षेत्र पंचकुली मराठा सरदार नाईक निंबालकर के नियंत्रण में था। शिवराया की पहली पत्नी येसुबाई नाइक निंबालकर परिवार से ताल्लुक रखती थीं। तरसोद के जागृत गणराया की भी ऐसी ही एक ऐतिहासिक विरासत है।
 
तरसोद गणपति के न्यासी मंडल की ओर से यहां मंदिर के पीछे एक धर्मशाला और दो बड़े सभागार बनाए गए हैं। अब न्यासी मंडल की ओर से मंदिर में सामूहिक विवाह की सुविधा दी गई है। लग्न सराय में ऐसी व्यवस्था की गई है कि एक बार में एक या दो की बजाय रोज 10 से 12 शादियां होंगी। यह जानकारी तरसोद गणपति संस्थान द्वारा दी गई है। मुक्ताबाई की छोटी वारी के लिए मुक्ताईनगर जाने वाले तीर्थयात्री और शेगांव के गजानन महाराज के दर्शन के लिए जाने वाले पैदल जुलूस यहां दर्शन के लिए रुकते हैं।
 
'हातेड' नाला नाम कैसे रखा गया?
 
पेशवा और मराठा सरदार की सेना जब उत्तर में लड़ाई करने जाती थी तब वे मुरार खेड़ा-तरसोद में रुका करते थे। लड़ाई पुरी तरह बिना किसी रुकावट के पार पड़े इसलिए भी वह इस मंदिर में दर्शन करने आते थे मंदिर के नाले में एक बार बाढ़ आने के कारण एक हाथी इसमें बह गया इसलिए इस नाले का नाम हातेड रखा गया। हर साल यहां कार्तिक शुद्ध त्रिपुरारी पौर्णिमा में यात्रा होती है। माघ शुद्ध तिलकुंद चतुर्थी में इस मंदिर का जन्म दिन मनाया जाता है।
 

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बाढ़ को रोकने के लिए बनाया गया बांध
 
हातेड के नाले से मंदिर को बाढ़ से सुरक्षित रखने के लिए एक ऊंचा व लंबा बांध बनाया गया है। मूल मंदिर का जीर्णोद्धार करके बड़ी दीवार बनाई गई है। मंदिर के आस-पास के जगह को पक्का बनाया गया है। आगे शिव पंचायतन महादेव, मारुती व एकवीरा देवी मंदिर को बांधने का काम शुरू किया गया है। इसके अलावा भक्तों के लिए सुविधा उपलब्ध कराई गई है। राष्ट्रीय महामार्ग तरसोद की सीमा पर पुरातन शिल्प जैसा प्रवेशद्वार बनाया गया है। निवृत्त तहसीलदार मोतीराम भिरुड चिनावल निवासी ने अपनी पत्नी सुशीला की याद में 50×30 फिट का सभागृह का निर्माण किया।
 
 
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