नई दिल्ली:
राष्ट्रपति पद के लिए NDA की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू पद के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल करने से एक दिन पहले गुरुवार को भुवनेश्वर से राजधानी दिल्ली पहुंचीं हैं। सूत्रों के मुताबिक, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी के आवास पर उनका नामांकन पत्र तैयार किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वरिष्ठ मंत्री राजनाथ सिंह और अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा उनके प्रस्तावकों में शामिल होंगे। गौरतलब है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का पांच साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है। जिसके बाद सत्ताधारी भाजपा सहित विपक्ष ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए कमर कस ली है। इसी कड़ी में मंगलवार को दोनों पक्षों ने अपने अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी।
जहां सत्ताधारी भाजपा ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में द्रौपदी मुर्मू का नाम प्रस्तावित किया। तो वहीं विपक्षी दलों ने देश के सर्वोच्च पद के लिए अपनी पसंद के रूप में पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के नाम की घोषणा की। मुर्मू के नाम की घोषणा को भाजपा का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। मुर्मू के नाम की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुभकामनाएं दीं। पीएम मोदी ने बाद में एक सोशल मीडिया पोस्ट डालते हुए कहा, "श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ने अपना जीवन समाज की सेवा और गरीबों, दलितों के साथ-साथ हाशिए के लोगों को सशक्त बनाने के लिए समर्पित कर दिया है। उनके पास समृद्ध प्रशासनिक अनुभव है और उनका कार्यकाल उत्कृष्ट रहा है। मैं हूं विश्वास है कि वह हमारे देश की एक महान राष्ट्रपति होंगी।"
कौन हैं द्रौपदी मुर्मू और वह महत्वपूर्ण क्यों हैं?
1958 में जन्मीं द्रौपदी मुर्मू भारत के आदिवासी समुदाय की राजनीतिज्ञ हैं। अगर 64 वर्षीय मुर्मू निर्वाचित होती हैं तो वे ओडिशा के एक आदिवासी समुदाय से भारत के पहले राष्ट्रपति होंगे। वह झारखंड के राज्यपाल के रूप में कार्य करने वाली आदिवासी समुदाय की पहली सदस्य थीं। इसके साथ ही वह एक बार ओडिशा में बीजू जनता दल (BJD) मंत्रिमंडल का हिस्सा भी रहीं, जब नवीन पटनायक ने भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई थी। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में मुर्मू का चयन विपक्षी खेमे को कड़ी टक्कर दे सकता है। दरअसल, झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा शासित झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है जो कि UPA के सहयोगी हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा, विपक्ष का हिस्सा होने के नाते, राष्ट्रपति चुनाव के लिए संयुक्त-विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा का समर्थन करने की उम्मीद है। लेकिन झारखंड के पूर्व राज्यपाल होने के नाते मुर्मू के राज्य सरकार के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध हैं। इससे झामुमो की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
गौरतलब है कि 2017 में मुर्मू ने झारखंड में भूमि काश्तकारी अधिनियमों में संशोधन करने की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की योजना को विफल कर दिया था। उन्होंने छोटानागपुर काश्तकारी (CNT) अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी (SPT) अधिनियम में संशोधन के लिए पेश किए गए विधेयकों को वापस कर दिया था। झारखंड के आदिवासियों ने तत्कालीन भाजपा सरकार के सीएनटी और एसपीटी अधिनियमों में प्रस्तावित संशोधनों का आक्रामक विरोध किया था। यह द्रौपदी मुर्मू को एक मजबूत प्रशासनिक आदिवासी नेता बनाता है। इस फैसले के साथ, भाजपा की ओडिशा में राजनीतिक पकड़ मजबूत होगी। और साथ ही आदिवासी सौम्य का समर्थन भी प्राप्त होगा।