Corona Pandemic: निजी अस्पतालों की दास्तान-ए-लूट

    16-Jun-2022
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सेवा कब मेवा में हुई तब्दील, जनता को पता ही नही चला...
 
देश की सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। स्वास्थ्य सेवा राज्यों का विषय होने का हवाला देते हुए केंद्र सरकार अपना पल्ला झाड़ देती है। 'नेशनल हेल्थ प्रोफाइल' के मुताबिक भारत अपने स्वास्थ्य क्षेत्र पर जीडीपी का महज 1.02 फीसदी खर्च करता है। जबकि श्रीलंका, भूटान और नेपाल जैसे गरीब देशों की तुलना में भी कम है। 'ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी-2021' के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और उपलब्धता में भारत 180 देशों में 145वी रैंकिंग पर है। यह भयावह स्थिति है। भारतीय संविधान के 'अनुच्छेद-21' देश के प्रत्येक नागरिक को सम्मान से जीने का अधिकार देता है और जीने के लिए 'स्वास्थ्य का अधिकार' प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है।
  

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दुनिया में कोरोना महामारी ने 2019 में दस्तक दी। भारत में इसका प्रवेश 2020 के प्रारंभ में हुआ। इस वर्ष को कोरोना महामारी की वजह से हमेशा याद रखा जायेगा। इस महामारी के बारे में सरकार के पास न तो पूरी जानकारी थी और न ही वह इसके लिए तैयार थे। वह केवल पश्चिमी देशों के नक्श-ए-कदम पर चलने को मजबूर थे। जानकारी व कोई पूर्व शोध न होने के कारण भारतीय सरकार कोई भी ठोस निर्णय लेने में असमर्थ थी।
 


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केंद्र सरकार ने पुरे देश में लॉकडाऊन लगाने की घोषणा कर दी। सारा देश घरों में कैद हो कर रह गया। प्रवासी मजदूरों की त्रासदी को भी हमने टी.वी. चैनलों, अखबारों, सोशल मिडिया के माध्यम से देखा। हम ने ऑक्सीजन के अभाव में सड़कों पर लोगो को मरते देखा, वहीं दूसरी ओर शमशान में शव दहन के लिए कतारें भी देखी, साथ ही परिजनों द्वारा मुखाग्नि देने से मना करने वालो को भी देखा। सरकारों द्वारा शवों को बिना कफन के नदी किनारे रेत में दफन के मंजर को देखा और उन लाशों को कुत्तों द्वारा नोचते देखा, ये मंजर हम ताउम्र नहीं भुला पाएंगे।
 

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केंद्र सरकार ने पुरे देश में लॉकडाऊन लगाने की घोषणा कर दी। सारा देश घरों में कैद हो कर रह गया। प्रवासी मजदूरों की त्रासदी को भी हमने टी.वी. चैनलों, अखबारों, सोशल मिडिया के माध्यम से देखा। हम ने ऑक्सीजन के अभाव में सड़कों पर लोगो को मरते देखा, वहीं दूसरी ओर शमशान में शव दहन के लिए कतारें भी देखी, साथ ही परिजनों द्वारा मुखाग्नि देने से मना करने वालो को भी देखा। सरकारों द्वारा शवों को बिना कफन के नदी किनारे रेत में दफन के मंजर को देखा और उन लाशों को कुत्तों द्वारा नोचते देखा, ये मंजर हम ताउम्र नहीं भुला पाएंगे।
 
देश के बहुत सारे छोटे-बड़े अस्पतालों की अच्छी-बुरी हर तरह की सच्चाई देश के सामने आई। एक ओर इस भयावह दौर ने कुछ अस्पतालों के प्रबंधन की अच्छाई की पहचान करवाई, वहीं बहुत सारे अस्पतालों के प्रबंधन का भयावह चेहरा भी जनता के सामने उजागर हुआ। जिन्होंने आपदा काल में चिकित्सा व्यवस्था को मानव सेवा की जगह मेवा खाने का जरिया मान नोट छापने की मशीन बना लिया था। लोभ-लालच ने बहुत सारे निजी अस्पताल संगठित अपराध करने का सबसे बड़ा व सुरक्षित अड्डा बन गये थे। हालांकि यह भी कटु सत्य है कि इस दौरान चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े अधिकांश लोगों ने अपनी जान की परवाह न करके कठिन परिस्थितियों में भी लगातार मरीजों की जान बचाई।
 
 
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देश में महामारी संक्रमण अपने उफान पर पहुंच गया। रोज लाखों देशवासी संक्रमित हो रहे थे। सरकारी अस्पतालों की दयनीय हालत के कारण जनता को निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ा। देश में टेस्टिंग किट / दवा / इंजेक्शन / प्राणवायु Oxygen / वेंटिलेटर / रुई / पीपीई किट / सेनेटाइजर व बेड की कमी हो गई थी। बस यहां से हजारों अस्पतालों व दवा कंपनियों ने आपदा में अवसर तलाशने का खेल शुरू किया। इस समय बहुत सारे अस्पतालों ने इलाज के नाम पर जमकर लूट करते हुए लाखों रुपये का भारी-भरकम बिल वसूलना शुरू किया। उनका यह कृत्य इंसान की मजबूरी का फायदा उठाकर इंसानियत को बेहद शर्मसार करने वाला दंडनीय जघन्य अपराध है। जिन्हें 1 रुपये लीज पर जमीन मिली है वे भी इस लूट में शामिल रहे।
 
जो किसी काम का नहीं उसमें भी मरीजों की लूट
 
कोरोना काल में रेमडेसिवीर इंजेक्शन के लिये मारामारी मची रही। इसकी जमकर कालाबाजारी हुई। 2000 रुपये का इंजेक्शन 30,000 तक में बेचा गया। कई अस्पतालों के कर्मचारी भी इसमें शामिल रहे। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कह दिया था कि इसके इलाज में प्रभावी होने के सबूत नहीं है। हालांकि बाद में इन पर कार्रवाई हुई। अदालतों में मामला चला और ऐसे कई काला बाजारियों को सजा भी हुई, लेकिन तब तक कई मरीज इसके अभाव में जान गवां चुके थे।
 
पैथ लैब्स की भी बल्ले-बल्ले
 
कोरोना जांच के नाम पर निजी पैथोलॉजी लैबों ने भी जमकर मुनाफा कमाया। सामान्य रूप से 200 रुपये की किट से RT-PCR टेस्ट करने वाली लैबों ने इसके लिए मरीजों से 3,000 रुपये तक वसूल किये। कुछ समाज सेवकों द्वारा इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उठाया गया। जिसके बाद राज्य सरकार हरकत में आई और अलग-अलग राज्य ने दरें निर्धारित की।
 
सब सरकार के संज्ञान में
 
ऐसा नहीं है कि इन सारी बातों से सरकारें अनजान थी और उन्होंने इसके लिए कदम नहीं उठाए। सरकार द्वारा समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी किये गये पर धरातल पर उनका क्रियान्वयन नहीं हुआ। क्रियान्वयन करने वाले अधिकारियों ने मनमानी करने वाले अस्पतालों के साथ मिल कर जनता से की गई कमाई का बंटवारा किया। महाराष्ट्र सरकार द्वारा जारी किये गये नोटिफिकेशन के बावजूद किस तरह राज्य के निजी अस्पतालों ने लूट मचाई उसका एक उदाहरण आपसे साझा कर रहा हूं।
 
महाराष्ट्र सरकार ने दिनांक 31/8/2020 को आदेश जारी कर सभी कोरोना अस्पतालों में 80% बेड क्षमता सरकारी दर पर इलाज के लिए आरक्षित कर दी थी। केवल 20% बेड निजी अस्पताल अपनी सामान्य दर वसूलने के लिए स्वतंत्र थे, परंतु संपूर्ण राज्य में किसी भी निजी अस्पताल ने इसका पालन नहीं किया, न ही इस बात को मरीजों को बताया। मैंने सूचना के अधिकार के तहत राज्य सरकार से जानकारी मांगी कि राज्य में जिन 80% मरीजों का सरकारी दर पर इलाज हुआ, उसकी सूची उपलब्ध कराई जाए जिसके जवाब में मुझे लिखित उत्तर दिया गया सरकार के पास ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि सरकार ने ऐसे कोई आंकड़े जमा ही नही किये है। सरकार का काम सिर्फ योजना घोषित करने का नहीं है। बल्कि यह देखने का भी है कि उसका लाभ जनता को मिल भी रहा है या नहीं।
 
बीमा कंपनियों ने भी झटके हाथ
 
जिन लोगों के पास इन्शुरन्स कंपनी की कैशलेस पॉलिसी सुविधा थी उन्हें भी उसका फायदा नहीं दिया गया और सारी रकम अग्रीम नगद जमा कराई गई। इन्शुरन्स कंपनियों ने भी मरीजों को सरकारी दरों का बहाना बनाकर पूरा क्लेम देने से मना कर दिया। मरीजों की तमाम शिकायतों के बावजूद अधिकारियों ने इसकी सुध नहीं ली और ये गोरखधंधा चलता रहा। मरीज लूटते रहे और गरीब होते गये। आयुष्मान भारत योजना के तहत आने वाले मरीजों को भी योजना का फायदा नहीं मिला।
 
बता दे, अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिका के कैनयएरो ने 1963 में ही चेतावनी दी थी कि स्वास्थ्य सेवा को बाजार के हवाले कर देना आम लोगों के लिए घातक साबित होगा।
 
उपाय जो सरकार करे
 
निजी अस्पतालों द्वारा की गई इस महालूट से जनता को राहत देने के लिये केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा मिलकर इसका ऑडिट कराने के निर्देश देना चाहिए और मरीजों से लूटे गए पैसे उन्हें वापस दिलाने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिये। सरकार द्वारा स्पष्ट नीति व दिशा निर्देश बनाकर निजी अस्पताल / जांच सेंटर / पैथोलॉजी लैब सभी की अधिकतम दर निर्धारित करनी चाहिए, साथ ही अस्पतालों को श्रेणी अनुसार वर्गीकृत करना चाहिये। इन दरों की जानकारी का फलक भी अस्पतालों में लगाना अनिवार्य करना चाहिये।
 
संजय बी.जे. अग्रवाल,
नागपुर
 
Disclaimer : इस ब्लॉग में दी गई जानकारी लेखक द्वारा स्वतंत्र रूप से एकत्रित की गई है। इसके लिए अभिजीत भारत किसी भी तरह से बाध्य नहीं है।