वट पूर्णिमा के व्रत से मिलता है अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद, पढ़ें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

    14-Jun-2022
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vat savitri
 
नागपुर:
 
हिंदू पंचांग में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन वट सावित्री व्रत पूजन करने की भी परंपरा है। ये पर्व मुख्य रूप से गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा समेत दक्षिण भारत के कई इलाकों में मनाया जाता है। इस व्रत को शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं और वट यानी बरगद के पेड़ का पूजन करती हैं। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व माना गया है।
 
क्यों खास है ये दिन?
 
हिंदू धर्म में ज्‍येष्‍ठ मास की पूर्णिमा तिथि को बेहद ही खास माना जाता है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार, इस दिन सावित्री के पति सत्‍यवान को वट वृक्ष के नीचे जीवनदान मिला था इसलिए इस दिन को वट पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा का स्थान 7 विशेष पूर्णिमा में आता है।

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(Image Credit: Internet)
 
व्रत कथा
 
वट सावित्री व्रत की प्रचलित कथा के अनुसार राजर्षि अश्वपति की एकमात्र संतान थीं सावित्री। सावित्री ने सत्यवान को अपने पति रूप में चुना। लेकिन जब नारद जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं, तो भी सावित्री ने अपना निर्णय नहीं बदला। सावित्री राजवैभव को त्याग कर अपने पति सत्यवान और उनके परिवार के साथ वन में रहने लगीं। सत्यवान वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे। जिस दिन सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था उसी दिन वह लकड़ियां काटने जंगल गए। वहां वह मुर्छित होकर जमीन पर गिर पड़े। उसी समय यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। तीन दिन से व्रत कर रहीं सावित्री उस घड़ी को जानती थीं, सावित्री ने यमराज से उनके पति के प्राण न लेने की प्रार्थना की। लेकिन यमराज ने उनकी नहीं सुनी। तब सावित्री भी उनके पीछे-पीछे ही जाने लगीं। यमराज द्वारा कई बार मना करने के बाद भी सावित्री अपनी जिद पर अड़ी रहीं। सावित्री के इस साहस और त्याग से यमराज प्रसन्न हुए और उनसे कोई तीन वरदान मांगने को कहा।
सावित्री ने वरदान स्वरूप सबसे पहले सत्यवान के दृष्टिहीन माता-पिता के नेत्रों की ज्योति मांगी, फिर उनका छिना हुआ राज्य मांगा और तीसरे वरदान में अपने लिए 100 पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा। यमराज ने तथास्तु कहा और वह समझ गए कि सावित्री के पति को साथ ले जाना अब संभव नहीं। इसलिए उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया और उनके पति को जीवनदान दिया। जब ये सब हुआ तब उस समय सावित्री अपने पति को लेकर वट वृक्ष के नीचे ही बैठी थीं। इसलिए इस दिन महिलाएं जीवन में सुख समृद्धि और जीवनसाथी की दीर्घायु की कामना करते हुए वट वृक्ष की पूजा करती हैं।