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नागपुर:
आज की 21वीं सदी में जहां तकनीकी विकास से दुनिया महज एक क्लिक पर आ गई है। क्षेत्रीय बाधाओं को पार कर दुनिया के विभिन्न देश एक दूसरे से जुड़ रहे हैं। यहां तक की विज्ञान चांद और मंगल ग्रह पर जीवन खोजने की राह पर है। इन सब में दुनिया का एक बड़े तपके को आज भी अपने मूल अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है। एक तरफ लोगों के लिए जहां स्मार्टफोन, लैपटॉप, कार, महंगी गाड़ियां और लग्जरी लाइफ जरुरत बन गई है। वहीं, दूसरी तरफ दुनिया की एक बड़ी आबादी को दो वक्त की रोटी, शरीर ढकने को साफ सुथरे कपड़े और सर पर छत के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ती है।
इतना ही नहीं, आज की 21वीं सदी में भी लोगों के साथ जाती, धर्म, रंग, लिंग, भाषा के आधार पर भेदभाव किया जाता है। इसलिए दुनिया में मौजूद हर व्यक्ति के मानवाधिकारों को संरक्षित करने और जागरूकता लाने के लिए इस दिन को मनाने की शुरुआत की गई।
कब हुई थी इस दिन को मनाने की शुरुआत?
अमेरिका के संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 10 दिसंबर 1948 को मानव अधिकारों के सार्वजनिक घोषणा पत्र (UDHR) को अपनाया था, जिसके बाद से हर साल इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। हर साल इंसान के मूलभूत अधिकारों के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से इसे एक समर्थित थीम के अंतर्गत मनाया जाता है। साल 2022 के लिए Dignity, Freedom and Justice for All थीम रखी गई है।