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नागपुर : भाजपा महाराष्ट्र के समन्वयक और MSEB होल्डिंग कंपनी, महाजेनको, महाट्रांस्को, और महाडिस्कॉम के निदेशक विश्वास पाठक ने राज्य में इस्पात कारखाने उच्च बिजली दरों के कारण विदेशों में चले जाने के संबंध में दिए बयान पर अपनी नाराजगी जताई है। उन्होंने इस पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा, 'राज्य में बीस साल पहले बंद हो चुकी फैक्ट्रियों का नाम लेकर जनता को गुमराह करना अस्वीकार्य है। विदर्भ इंडस्ट्रीज एसोसिएशन को सावधान रहना चाहिए और झूठ फैलाने वाले व्यक्तियों को अपने प्रतिष्ठित मंच का उपयोग करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।'
बता दे, मंगलवार को विदर्भ इंडस्ट्रीज एसोसिएशन द्वारा ली गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया कि महाराष्ट्र राज्य में बढ़ रही बिजली दरों के चलते इस्पात कारखाने विदेशो में जा रहे है। इनके द्वारा कुछ बंद कारखानों की सूचि भी दी गई।
इस पर विश्वास पाठक ने दावा किया कि जिन कारखानों का जिक्र विदर्भ इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ने किया है वह आठ से तेईस साल पहले अपना संचालन बंद कर चुकी है। महावितरण के रिकॉर्ड में नागपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस रिपोर्ट में उल्लेखित कंपनियों के नामों की जांच से पता चलता है कि फरवरी 2002 में गणपति मिश्र धातु और स्टील प्राइवेट लिमिटेड की बिजली आपूर्ति बंद कर दी गई थी। बेशक उस वक्त उस फैक्ट्री का काम बंद था। इस प्रकार बाबा मुंगीपा स्टील उद्योग कारखाने को जनवरी 2013 में बिजली आपूर्ति बंद कर दी गई है। जिन कंपनियों के नाम बताए गए हैं, उनकी बिजली आपूर्ति वर्ष 1999, 2002, 2003, 2006 में बंद कर दी गई है। यानी उस समय राज्य में उन कारखानों का काम बंद कर दिया गया था। इन कंपनियों पर छब्बीस लाख से पौने तीन करोड़ रुपये के बिल भी बकाया हैं। ऐसी फैक्ट्रियों के नामों का हवाला देकर यह धारणा बनाना गलत होगा कि इस्पात उद्योग अब राज्य के बाहर संचालित होता है। यह सच है कि के सी फेरो एंड रेरोलिंग मिल्स प्राइवेट लिमिटेड के काम महाविकास अघाड़ी की सरकार के रहते हुए अक्टूबर 2021 में बंद हुए।
राज्य में कंपनियों के मौजूदा काम को भी गुमराह किया गया है। बिजली की खपत से यह देखने को मिल रहा है कि प्रदेश में उद्योग धंधे बंद होने की बजाय तेज गति से चल रहे हैं। 31 मार्च 2022 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष 2021-22 में राज्य में 4,53,438 औद्योगिक उपभोक्ता थे और 50,563 मिलियन यूनिट बिजली की खपत हुई थी। मार्च के बाद पिछले छह महीनों में औद्योगिक उपभोक्ताओं की संख्या दो हजार बढ़कर 4,55,271 हो गई है और सितंबर में समाप्त छह महीनों में उन्होंने 27,712 मिलियन यूनिट बिजली की खपत की है। छह माह में पिछले साल की 54 फीसदी बिजली खपत हो चुकी है। सवाल यह है कि अगर उद्योग बंद हो रहे होते तो बिजली की खपत कैसे बढ़ती।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सरकार छह में से तीन महीने ही सत्ता में रही है। बिजली दरों को लेकर भी लोगों को गुमराह किया गया है। जबकि महाराष्ट्र में औद्योगिक उपभोक्ताओं के लिए औसत टैरिफ 8.48 पैसे प्रति यूनिट प्रतीत होता है, अगर औद्योगिक उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध विभिन्न छूटों का लाभ उठाया जाता है तो औसत टैरिफ घटकर 5 रुपये प्रति यूनिट हो जाता है। साथ ही विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तरी महाराष्ट्र के साथ-साथ डी और डी प्लस क्षेत्रों में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सरकार द्वारा शुरू की गई योजना के कारण उद्योगों को अधिक रियायत मिलती हैं। इसके लिए सरकार हर साल बारह सौ करोड़ का बोझ वहन करती है। नागरिकों और उद्यमियों को तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए और व्यक्तिगत हितों के लिए गुमराह करने के किसी के प्रयासों का शिकार नहीं होना चाहिए।
पैकेज्ड स्कीम इंसेंटिव नामक एक लाभ राज्य सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है। उद्यमियों को इसे प्राप्त करने के लिए पंद्रह वर्षों तक उद्योग चलाने की उम्मीद है। यदि उससे पहले कारोबार बंद हो जाता है, तो लिया गया लाभ ब्याज सहित वापस करना पड़ता है। विदर्भ इंडस्ट्रीज एसोसिएशन को ऐसे उद्यमियों से वसूली के लिए सरकार से अपील और मदद करनी चाहिए।