"सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥"
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नवरात्रि के पाँचवें दिन मां स्कंदमाता (Maa Skandamata) की पूजा की जाती है। वे भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं। स्कंदमाता का स्वरूप मातृत्व, करुणा और शक्ति का अद्भुत संगम है। भक्तों का मानना है कि मां की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
मां स्कंदमाता का महत्व
मां स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत दिव्य है। वे कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं और इसीलिए उन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। उनके चार भुजाएं हैं। दो हाथों में कमल पुष्प हैं, एक में बाल स्कंद को धारण करती हैं और एक हाथ वरमुद्रा में रहता है। उनका वाहन सिंह है, जो साहस और शक्ति का प्रतीक है। मां स्कंदमाता की उपासना से साधक को वैभव और शांति की प्राप्ति होती है और उसके जीवन से अज्ञान का अंधकार दूर होता है।
पूजा-विधि और अर्पण
इस दिन भक्त प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और मां स्कंदमाता की प्रतिमा या चित्र को कमल पुष्पों से सजाते हैं। मां को पीले या नारंगी फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है। केले का भोग अर्पित करने से स्वास्थ्य और समृद्धि मिलती है। "ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः" मंत्र का जाप करने से साधक को अलौकिक शांति प्राप्त होती है। इस दिन की पूजा विशेषकर संतान की उन्नति और परिवार के सुख के लिए की जाती है।
आध्यात्मिक संदेश
माँ स्कंदमाता हमें यह संदेश देती हैं कि मातृत्व ही सबसे बड़ा बल है। वे सिखाती हैं कि करुणा, दया और निस्वार्थ प्रेम से ही जीवन में संतुलन और सुख प्राप्त होता है। उनका स्वरूप यह प्रेरणा देता है कि शक्ति और ममता साथ-साथ चल सकती हैं। नवरात्रि के पाँचवें दिन की साधना साधक को न केवल भौतिक समृद्धि प्रदान करती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करती है।