"पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥"
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नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा (Chandraghanta) की उपासना की जाती है। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार की घंटा शोभायमान रहती है, इसी कारण उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। यह रूप शक्ति और वीरता का प्रतीक है। मां चंद्रघंटा अपने भक्तों के जीवन से भय और पीड़ा को समाप्त कर उन्हें शांति और सुख का आशीर्वाद देती हैं।
मां चंद्रघंटा का महत्व
मां चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत अद्भुत है। वे दस भुजाओं वाली हैं और प्रत्येक हाथ में शस्त्र धारण किए हुए हैं। उनका वाहन सिंह है, जो वीरता और साहस का प्रतीक है। उनके गले में घंटे की ध्वनि से उत्पन्न तरंगें नकारात्मक शक्तियों को दूर कर देती हैं। इस रूप की उपासना से भक्तों के जीवन में आत्मविश्वास और निर्भीकता आती है। युद्ध जैसे कठिन समय में भी साधक अपने लक्ष्य पर केंद्रित रह सकता है।
पूजा-विधि और अर्पण
इस दिन भक्त प्रातः स्नान कर पीले या सुनहरे वस्त्र धारण करते हैं। मां चंद्रघंटा को सुगंधित फूल, विशेष रूप से गेंदा या कमल, अर्पित करना शुभ माना जाता है। उन्हें दूध या दूध से बनी मिठाई का भोग अर्पित करने से शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। साधक "ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः" मंत्र का जाप करते हैं। माना जाता है कि इस दिन की साधना से भक्त के जीवन से सभी भय समाप्त हो जाते हैं।
आध्यात्मिक संदेश
मां चंद्रघंटा का संदेश है कि जीवन में चुनौतियां चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, हमें निर्भीक रहकर उनका सामना करना चाहिए। उनका स्वरूप हमें यह शिक्षा देता है कि शक्ति और साहस का सही उपयोग समाज और धर्म की रक्षा के लिए होना चाहिए। वे यह भी बताती हैं कि भीतर की घंटाध्वनि, यानी ध्यान और साधना की लय, हमें नकारात्मकता से मुक्त कर दिव्यता से जोड़ती है। इस प्रकार तीसरे दिन की साधना साधक को आंतरिक शक्ति और मानसिक शांति प्रदान करती है।