"दधाना करपद्माभ्यामक्षयमालाकमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥"
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नवरात्रि (Navratri) के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है। वे तपस्या, संयम और भक्ति की प्रतीक हैं। "ब्रह्मचारिणी" का अर्थ है ब्रह्म का अनुसरण करने वाली। उनके इस रूप की आराधना से साधक के जीवन में तप, त्याग और अनुशासन का भाव उत्पन्न होता है।
मां ब्रह्मचारिणी का महत्व
माँ ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल है। यह संयम, साधना और तप का प्रतीक है। वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती का ही रूप हैं जिन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनका यह स्वरूप साधना की शक्ति का द्योतक है। माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से साधक के जीवन में इच्छाशक्ति प्रबल होती है और वह कठिन परिस्थितियों में भी डगमगाता नहीं।
पूजा-विधि और अर्पण
इस दिन भक्त प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और माँ ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या चित्र को गंगाजल से शुद्ध करते हैं। उन्हें सफेद या पीले फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है। चीनी (शक्कर) का भोग लगाने से दीर्घायु और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। साधक "ॐ ब्रह्मचारिण्यै नमः" मंत्र का जाप करते हैं। यह पूजा साधक को आत्मसंयम और धैर्य प्रदान करती है।
आध्यात्मिक संदेश
मां ब्रह्मचारिणी का संदेश है कि जीवन में सफलता पाने के लिए साधना, संयम और धैर्य आवश्यक है। उनके स्वरूप से यह शिक्षा मिलती है कि कठिन तप और अनुशासन ही मनुष्य को दिव्यता की ओर ले जाते हैं। वे हमें प्रेरित करती हैं कि सच्ची शक्ति बाहर नहीं, बल्कि भीतर की साधना और विश्वास में निहित है। इसलिए नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना साधक को मानसिक दृढ़ता और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है।