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एबी न्यूज़ नेटवर्क।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद अब राज्य की नजरें स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं के चुनावों पर थीं। इस बीच उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ के अचानक इस्तीफे के चलते उपराष्ट्रपति चुनाव (Vice Presidential election) की घोषणा हुई है। एनडीए ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सी. राधाकृष्णन को उम्मीदवार घोषित किया है और कोशिश है कि यह चुनाव निर्विरोध हो। इसी सिलसिले में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार और शिवसेना (उद्धव गुट) प्रमुख उद्धव ठाकरे को फोन कर राधाकृष्णन के पक्ष में समर्थन मांगा। सूत्रों के अनुसार, फडणवीस ने दोनों नेताओं से कहा कि "इस चुनाव में हमें भी आपके समर्थन की ज़रूरत है।" हालांकि, यह जानकारी सामने आई है कि उन्होंने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष को फोन नहीं किया।
विपक्ष ने उतारा संयुक्त उम्मीदवार
एनडीए की कोशिश के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने अपना उम्मीदवार उतार दिया है। आज संसद भवन में विपक्ष की ओर से संयुक्त उम्मीदवार के रूप में सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश बी. सुधर्शन रेड्डी ने नामांकन दाखिल किया। इस अवसर पर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे समेत इंडिया गठबंधन के प्रमुख नेता मौजूद रहे। शिवसेना (ठाकरे गुट) के सांसद संजय राउत ने इसकी पुष्टि की और बताया कि विपक्ष ने यह चुनाव एकजुट होकर लड़ने का फैसला किया है।
पवार और ठाकरे का झुकाव इंडिया गठबंधन की ओर
शरद पवार और उद्धव ठाकरे दोनों ने ही इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी का समर्थन किया है। नामांकन दाखिल करने के समय शरद पवार ने ट्वीट कर कहा कि “यह लड़ाई संविधान और लोकतंत्र को मजबूत करने की है। हमें विश्वास है कि संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार बी. सुधर्शन रेड्डी लोकतांत्रिक मूल्यों पर खरे उतरेंगे।” वहीं उद्धव ठाकरे का गुट भी रेड्डी के समर्थन में खड़ा दिखाई दे रहा है। इससे साफ है कि एनडीए की निर्विरोध चुनाव की रणनीति को विपक्ष ने चुनौती दी है।
राजनीतिक हलकों में चर्चाओं का दौर
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को उपराष्ट्रपति चुनाव में महाराष्ट्र से समर्थन जुटाने की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। वे लगातार विभिन्न दलों के वरिष्ठ नेताओं से संपर्क कर रहे हैं। हालांकि, विपक्ष की एकजुटता और इंडिया गठबंधन की ओर से मजबूत उम्मीदवार उतारे जाने के बाद यह चुनाव कड़ा हो गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार उपराष्ट्रपति चुनाव सिर्फ औपचारिकता नहीं रहेगा, बल्कि सत्ता और विपक्ष के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों की एक सशक्त लड़ाई देखने को मिलेगी। महाराष्ट्र की राजनीति में भी इस चुनाव के दूरगामी असर की चर्चाएं शुरू हो गई हैं।