शतरंज की रानी ग्रैंडमास्टर दिव्या पहुंची नागपुर! हुआ भव्य स्वागत

    31-Jul-2025
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-महज 19 साल की उम्र में रचा इतिहास! जानें उसका ऐतिहासिक सफर
-बनीं FIDE महिला वर्ल्ड कप 2025 चैंपियन और ग्रैंडमास्टर

Divya Deshmukh 
नागपुर:
FIDE महिला विश्व कप 2025 जीतने के बाद भारत लौटी नागपुर (Nagpur) की बेटी ग्रैंडमास्टर दिव्या देशमुख का नागपुर एयरपोर्ट पर भव्य स्वागत किया गया। बुधवार, 30 जुलाई को वुमन्स वर्ल्ड कप जीतकर जब वह अपने शहर पहुंचीं, तो उनका जोश और खुशी देखने लायक थी। नागपुरवासियों ने बड़ी संख्या में पहुंच कर इस युवा शतरंज सितारे का जोरदार स्वागत किया।
 
30 जुलाई को मुंबई एयरपोर्ट पर भी जोरदार स्वागत हुआ। दोपहर 2:20 बजे छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (CSMIA) पर उनके पहुंचते ही एयरपोर्ट स्टाफ ने उन्हें फूलों और तालियों से सम्मानित किया। यहां से उन्होंने नागपुर के लिए कनेक्टिंग फ्लाइट ली। एयरपोर्ट के प्रवक्ता ने बताया, “मुंबई एयरपोर्ट को गौरव प्राप्त हुआ कि हम विश्व चैंपियन दिव्या देशमुख का स्वागत कर सके। उन्होंने वैश्विक मंच पर भारत का नाम रोशन किया है।”
 
दिग्गज हम्पी को हराकर जीती चैंपियनशिप
दिव्या देशमुख ने जॉर्जिया के बाटुमी में आयोजित FIDE महिला वर्ल्ड कप 2025 के फाइनल में भारत की ही वरिष्ठ ग्रैंडमास्टर कोनेरू हम्पी को टाईब्रेक में हराकर यह ऐतिहासिक जीत दर्ज की। इस उपलब्धि के साथ ही वे ग्रैंडमास्टर बनने वाली देश की चौथी महिला और कुल 88वीं खिलाड़ी बन गईं। 19 साल की उम्र में यह उपलब्धि पाना न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भारतीय शतरंज की नई ऊंचाइयों की ओर इशारा करता है।
 
महाराष्ट्र कैबिनेट ने दी बधाई
दिव्या की इस ऐतिहासिक उपलब्धि को महाराष्ट्र सरकार ने भी सलाम किया। मंगलवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता में हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में दिव्या को औपचारिक रूप से बधाई दी गई। उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार समेत सभी मंत्रियों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कर दिव्या की जीत को राज्य और देश के लिए गर्व का क्षण बताया।
 
वंशानुगत विरासत से मिला शतरंज का संस्कार
कम ही लोग जानते हैं कि दिव्या देशमुख के खून में शतरंज की बिसात रची-बसी है। उनके परनाना डॉ. दुर्गाप्रसाद शर्मा न सिर्फ शतरंज प्रेमी थे, बल्कि वे आचार्य विनोबा भावे के घनिष्ठ मित्र भी थे। दोनों हर शनिवार पवनार आश्रम में शतरंज खेला करते थे। दिव्या की मां डॉ. नम्रता देशमुख बताती हैं, “जब मैंने अपने नाना और विनोबा जी को शतरंज खेलते देखा, तभी से मन में यह खेल बस गया था। शायद वही संस्कार दिव्या में भी आ गए।

Divya Deshmukh
 
नागपुर की गलियों से विश्व मंच तक का सफर
दिव्या की शतरंज यात्रा साल 2010 में शुरू हुई, जब वे मात्र 5 साल की थीं। नागपुर के शंकर नगर स्थित कॉलोनी में राहुल जोशी सर की शतरंज अकादमी में उन्हें दाखिला दिलाया गया। मां डॉ. नम्रता बताती हैं, “बड़ी बेटी आर्या जहां बास्केटबॉल और बैडमिंटन में व्यस्त थी, वहीं मैंने तय कर लिया था कि दिव्या को शतरंज की दुनिया में भेजूंगी।” 2012 में दिव्या ने पहला राष्ट्रीय स्वर्ण पदक जीता और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
 
बाल चैंपियन से बनीं विश्व विजेता
दिव्या ने 8 साल की उम्र में अंडर-10 वर्ल्ड चैंपियन बनकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। दक्षिण अफ्रीका के डरबन में यह जीत उनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनी। इसके बाद उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिताब अपने नाम किए। आज, जब वे वर्ल्ड कप जीतकर लौटी हैं, देश उन्हें ‘शतरंज की नई रानी’ के रूप में देख रहा है। दिव्या की यह यात्रा हर युवा के लिए प्रेरणा है कि समर्पण, अनुशासन और निरंतर प्रयास से कोई भी सपना पूरा हो सकता है।

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