बच्चों को निशाना बनाता जंक फूड का जाल!

    07-Jun-2025
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junk food
 (Image Source-Internet)
नागपुर।
नागपुर जैसे बढ़ते महानगर में, बच्चों के आसपास की दुनिया तेजी से बदल रही है। पहले जहाँ खेल के मैदान, लाइब्रेरी और पार्क बच्चों की दिनचर्या का हिस्सा थे, वहीं अब स्मार्टफोन, यूट्यूब और इंस्टाग्राम की दुनिया उनके सबसे करीबी साथी बन गए हैं। हाल ही में यूरोपियन कांग्रेस ऑन ओबेसिटी में हुई एक रिसर्च में खुलासा हुआ कि महज पांच मिनट के जंक फूड विज्ञापन भी बच्चों को औसतन 130 कैलोरी ज्यादा खाने के लिए प्रेरित कर देते हैं। यह विज्ञापन सिर्फ टीवी तक सीमित नहीं हैं; शहर के बस स्टॉप, मॉल, मोबाइल गेम्स और सोशल मीडिया सब जगह बच्चों को लुभाने में जुटे हैं। नागपुर के भी कई इलाकों में हम बड़े-बड़े ब्रांड के होर्डिंग्स और आकर्षक पैकिंग देखते हैं, जो बच्चों को अनजाने में ही बार-बार जंक फूड की ओर खींचते हैं।
 
क्यों कमजोर पड़ जाते हैं बच्चे?
नागपुर के जाने-माने बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अमित अग्रवाल के अनुसार, “7 से 15 साल की उम्र के बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता अभी विकसित हो रही होती है। उन्हें यह समझ नहीं आता कि विज्ञापनों का मकसद उन्हें लुभाना है, न कि सच्ची जानकारी देना।” विज्ञापन में रंग-बिरंगे कैरेक्टर, मजेदार गाने और चटपटे स्लोगन बच्चों के दिमाग पर गहरा असर डालते हैं। कई बार बच्चे भूखे न भी हों, तब भी ऐसे विज्ञापन देखकर वे चॉकलेट, चिप्स या कोल्ड ड्रिंक की ज़िद करने लगते हैं। नागपुर के कई स्कूलों के बाहर छोटे-छोटे ठेले और दुकानों पर बिकते ये पैकेज्ड फूड भी बच्चों की आदतों को और बिगाड़ देते हैं। जब चारों ओर जंक फूड ही दिखे, तो बच्चों को हेल्दी ऑप्शन चुनना और भी मुश्किल हो जाता है।
 
बढ़ती मोटापा की समस्या
नागपुर जैसे शहरी क्षेत्र में बच्चों में मोटापा तेजी से बढ़ रही समस्या बन चुका है। लगातार स्क्रीन पर वक्त बिताना, खेलकूद में कमी और अनहेल्दी फूड की भरमार—ये सब मिलकर स्थिति को और गंभीर बना रहे हैं। बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और जोड़ों के दर्द जैसी बीमारियां अब कम उम्र में ही दिखाई देने लगे हैं। इसके साथ-साथ आत्मविश्वास की कमी, ताने सुनना और डिप्रेशन जैसी मानसिक चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं। दुख की बात यह है कि यह सब बच्चों की गलती नहीं है; असली दोष उस माहौल का है जो उन्हें हर जगह जंक फूड के लिए उकसाता है। चाहे स्कूल कैंटीन हो या यूट्यूब के बीच में आने वाला विज्ञापन, हर जगह से यही संदेश जाता है कि टेस्टी मतलब हेल्दी, जबकि असलियत इसके उलट है।
 
हल कहां है?
अच्छी खबर यह है कि इस दिशा में कुछ कदम उठाए जा रहे हैं। जैसे यूके में रात 9 बजे से पहले जंक फूड विज्ञापन दिखाने पर पाबंदी की तैयारी हो रही है। नागपुर में भी कई स्कूलों ने हेल्दी टिफिन पॉलिसी लागू की है, ताकि बच्चे घर से फल और हेल्दी स्नैक्स लाएं। माता-पिता भी बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम करने और आउटडोर एक्टिविटी को बढ़ावा देने की कोशिश कर सकते हैं। शहर प्रशासन को भी बच्चों के लिए ज्यादा पार्क, साइकिल ट्रैक और स्पोर्ट्स क्लब बनाने पर जोर देना चाहिए। यह सिर्फ खाने की आदत बदलने का सवाल नहीं है; यह उनके आत्मविश्वास और भविष्य को बेहतर बनाने की दिशा में उठाया गया कदम है। क्योंकि आखिर में, अगर हम आज बच्चों को बेहतर विकल्प देंगे, तभी कल का नागपुर और स्वस्थ और खुशहाल होगा।