Nationwide फूड डिलीवरी वर्कर्स की हड़ताल! वेतन, बीमा और काम के हालात पर उठी आवाज

    31-Dec-2025
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- प्लेटफॉर्म बेस्ड वर्कर्स का बड़ा विरोध

food delivery workers strikeImage Source:(Internet) 
एबी न्यूज़ नेटवर्क।
देशभर में फूड डिलीवरी (Food delivery) प्लेटफॉर्म से जुड़े कामगारों ने भारतीय फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (IFAT) के आह्वान पर बुधवार को हड़ताल का सहारा लिया। उनका आरोप है कि कंपनियां कम वेतन, अनुचित पेनल्टी और बीमा सुरक्षा के अभाव के बीच उन्हें लगातार काम के दबाव में रखती हैं। हड़ताल के कारण कई शहरों में पीक आवर्स के दौरान डिलीवरी सेवाओं के प्रभावित होने की आशंका जताई गई। डिलीवरी एजेंटों का कहना है कि घंटों सड़क पर रहने के बावजूद उनकी आय पहले से काफी घट गई है, जिससे आर्थिक तंगी बढ़ गई है।
 
‘रद्द ऑर्डर का भी जुर्माना हम पर’ : वर्कर्स का दर्द
एक डिलीवरी एजेंट ने बताया कि चाहे कितनी भी परेशानी क्यों न हो, ग्राहकों के सामने मुस्कुराते रहना ही पड़ता है। यदि ऑर्डर किसी भी वजह से कैंसिल हो जाए, तो पेनल्टी वर्कर के खाते से काट ली जाती है। उन्होंने कहा, 'हम 14 घंटे सड़क पर रहते हैं, फिर भी मेहनत के हिसाब से भुगतान नहीं मिलता। कंपनी बीमा भी नहीं देती। हर हाल में ‘थैंक्यू सर’ कहना पड़ता है, वरना रेटिंग पर असर पड़ता है।' उनका कहना है कि कंपनियों को इस मामले में संवेदनशील होकर सुधार करने की जरूरत है।
 
बदलते रेट कार्ड से बढ़ी मुश्किलें
एक अन्य राइडर ने दावा किया कि शुरू में रेट कार्ड ठीक थे, लेकिन अब इतने बदल दिए गए हैं कि बेहतर आमदनी करना लगभग नामुमकिन हो गया है। उन्होंने बताया कि हाल ही में दिल्ली के बाराखंबा इलाके में एक राइडर का एक्सीडेंट हुआ, लेकिन उसे कोई बीमा क्लेम नहीं मिला। टीम लीडर और अफसरों से संपर्क करने पर भी मदद नहीं मिली। अंततः साथी डिलीवरी एजेंटों ने आपस में पैसे इकट्ठे कर मदद की। इसके बावजूद वह राइडर रात 1–2 बजे तक काम करने को मजबूर है। उन्होंने आरोप लगाया कि कई बार टीम लीडर फोन तक नहीं उठाते और सवाल पूछने पर आईडी ब्लॉक कर दी जाती है।
 
‘14 घंटे काम, फिर भी सिर्फ 700–800 रुपये’
वर्कर्स का आरोप है कि रोज़मर्रा के खर्च पूरे करने के लिए उन्हें 14–16 घंटे तक काम करना पड़ता है, लेकिन बदले में रोज़ 700–800 रुपये से ज्यादा हाथ नहीं आता। कई इलाकों में हड़ताल के कारण डिलीवरी सेवाएं पूरी तरह थम गईं। कुछ राइडर्स ने कहा कि शुरुआत में कंपनियों ने कई लाभ दिए थे, लेकिन अब वे लगातार खत्म किए जा रहे हैं। एक राइडर ने कहा, “बाकी कंपनियां प्रमोशन देती हैं, लेकिन यहां डिमोशन ही मिलता है। हम मजबूरी में देर रात तक काम करते हैं।”
 
गिग वर्कर्स के अधिकारों पर फिर छिड़ी बहस
AAP के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने भी 10 मिनट डिलीवरी मॉडल की आलोचना करते हुए कहा कि यूनिकॉर्न बनने वाली कंपनियों की असली रीढ़ ये गिग वर्कर्स ही हैं, लेकिन सबसे ज्यादा दबाव भी इन्हीं पर है। देर होने पर न केवल ग्राहक नाराज़ होते हैं, बल्कि इंसेंटिव भी कट जाते हैं और सुरक्षा की कोई पुख्ता गारंटी नहीं होती। उन्होंने सुझाव दिया कि गिग वर्कर्स के काम के घंटे तय किए जाएं ताकि उन्हें 14–16 घंटे लगातार काम न करना पड़े और उनका सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।