विशेषाधिकार प्रस्ताव क्या है? एक बार फिर चर्चा में संवैधानिक प्रावधान

    13-Dec-2025
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- विधानमंडल की गरिमा से जुड़ा मुद्दा

Privilege motionImage Source;(Internet) 
मुंबई।
राज्य विधानमंडल में उठाए गए कई प्रश्नों के अब तक उत्तर प्रस्तुत न होने पर विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि सत्र की अंतिम बैठक तक इन सवालों के जवाब सदन के पटल पर नहीं रखे गए, तो मुख्य सचिव के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव (Privilege motion) लाया जाएगा। इसके बाद एक बार फिर विशेषाधिकार प्रस्ताव की संवैधानिक अवधारणा, उसकी प्रक्रिया और उसके उद्देश्य को लेकर चर्चा तेज हो गई है। विशेषाधिकार प्रस्ताव दरअसल उस स्थिति में लाया जाता है, जब यह महसूस हो कि विधानमंडल की गरिमा, अधिकार या कार्यवाही का अपमान या अवमानना हुई है।
 
संविधान में विशेषाधिकार प्रस्ताव का प्रावधान
भारतीय संविधान में विधायिका के विशेषाधिकारों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों से संबंधित प्रावधान अनुच्छेद 105 में तथा राज्य विधानमंडल के सदस्यों के विशेषाधिकार अनुच्छेद 194 में दिए गए हैं। महाराष्ट्र विधानसभा की कार्यवाही और व्यवसाय संचालन नियमावली में यह विस्तार से बताया गया है कि विशेषाधिकार प्रस्ताव किस प्रकार लाया जाएगा, किन परिस्थितियों में उसे स्वीकार किया जाएगा और उसकी जांच कैसे होगी। इसके लिए विधानसभा में एक अलग विशेषाधिकार समिति गठित की जाती है, जो मामले की जांच कर अपनी रिपोर्ट सदन को सौंपती है।
 
किनके खिलाफ और कब लाया जा सकता है प्रस्ताव
विशेषाधिकार प्रस्ताव केवल विधानसभा या विधान परिषद के सदस्यों तक सीमित नहीं है। यह किसी भी ऐसे व्यक्ति या संस्था के खिलाफ लाया जा सकता है, जिसने सदन की कार्यवाही में बाधा डाली हो या सदन की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई हो। इसमें आम नागरिक, सरकारी अधिकारी, मंत्री, विधायक, सांसद और यहां तक कि मीडिया या पत्रकार भी शामिल हो सकते हैं। यदि सदन से जुड़ी झूठी जानकारी फैलाई जाए, विधायकों के अधिकारों में बाधा डाली जाए, अध्यक्ष या सदन के निर्णय का अपमान किया जाए, विधानसभा की छवि खराब करने का प्रयास हो या सदन की कार्यवाही को प्रभावित करने की कोशिश की जाए, तो विशेषाधिकार प्रस्ताव लाया जा सकता है।
 
प्रक्रिया, कार्रवाई और उद्देश्य
विशेषाधिकार प्रस्ताव की प्रक्रिया के तहत संबंधित विधायक लिखित सूचना अध्यक्ष या सभापति को देता है। अध्यक्ष प्रस्ताव की ग्राह्यता तय करते हैं। यदि प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है, तो उसे विशेषाधिकार समिति के पास भेजा जाता है। समिति जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करती है, जिस पर सदन में चर्चा होती है और अंतिम निर्णय लिया जाता है। सदन के पास दंड देने, जुर्माना लगाने या माफी मंगवाने का अधिकार होता है, हालांकि हर मामले में सजा जरूरी नहीं होती। कई बार जांच के बाद प्रस्ताव खारिज भी कर दिया जाता है। कुल मिलाकर, विशेषाधिकार प्रस्ताव का उद्देश्य किसी से बदला लेना नहीं, बल्कि विधायिका की गरिमा की रक्षा करना, लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान बनाए रखना और जनप्रतिनिधियों को निर्भय होकर काम करने का वातावरण देना है।