वंदे मातरम के 150 वर्ष! संसद में विशेष चर्चा की तैयारी

    01-Dec-2025
Total Views |
 
Vande Matara
 Image Source:(Internet)
एबी न्यूज़ नेटवर्क।
इस सप्ताह के अंत में शुरू होने जा रहे संसद के शीतकालीन सत्र में भारत के राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ (Vande Mataram) के 150 वर्ष पूरे होने पर एक विशेष चर्चा आयोजित की जाएगी। लोकसभा में इस चर्चा के लिए पूरे 10 घंटे का समय निर्धारित किया गया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा लेंगे। लोकसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक में सरकार ने इस विषय को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, जबकि कांग्रेस की ओर से SIR और चुनाव सुधारों पर बहस की मांग की गई। हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने इस ऐतिहासिक विषय पर होने वाली विशेष चर्चा का समर्थन किया है। यह पहली बार होगा जब संसद में राष्ट्रगीत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संदर्भों को इतने विस्तृत रूप में रखा जाएगा।
 
कांग्रेस और सरकार आमने-सामने
7 नवंबर को आयोजित विशेष कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया था कि 1937 में कांग्रेस के नेतृत्व ने वंदे मातरम के मूल संस्करण में बदलाव किया था, जिससे गीत का अर्थ और भाव प्रभावित हुआ।
 
उनकी टिप्पणी
- “वंदे मातरम को खंडित किया गया और उसी विभाजन की सोच ने देश में गलत संदेश दिया।”
 
- पीएम मोदी के इस बयान के बाद राजनीतिक माहौल गरमा गया। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने पलटवार करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं। उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा कि 1937 में कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा लिया गया निर्णय महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, पटेल, बोस, राजेंद्र प्रसाद सहित कई स्वतंत्रता सेनानियों की सहमति से हुआ था और वह निर्णय रवींद्रनाथ टैगोर की सलाह पर आधारित था। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री इतिहास की उस समिति का ही नहीं, बल्कि टैगोर जैसे विश्व कवि का भी अपमान कर रहे हैं।
 
साहित्य से राष्ट्रगान तक का सफर
वंदे मातरम सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन रहा है। इसे बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था और यह पहली बार 7 नवंबर 1875 को ‘बंगदर्शन’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ। बाद में इसे उनके उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया, जिसकी पृष्ठभूमि संन्यासी विद्रोह पर आधारित थी। यही गीत आगे चलकर लाखों स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणा बना। संसद में होने वाली यह व्यापक चर्चा केवल इतिहास नहीं बल्कि भारत की राष्ट्रीय भावना, राजनीति और सांस्कृतिक स्वाभिमान का नया अध्याय लिखने वाली है। अब सभी की निगाहें इस बहुप्रतीक्षित चर्चा पर टिक गई हैं।