"सिद्धिदा भवेद्युक्तं देवी सर्वमङ्गलप्रदाः।
सिद्धिदात्री नमस्तुभ्यं शरणागतसर्वदा॥"
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नवरात्रि (Navratri) के नवें दिन *माँ सिद्धिदात्री* की पूजा की जाती है। वे देवी दुर्गा का अंतिम स्वरूप हैं और अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ और आशीर्वाद प्रदान करती हैं। "सिद्धिदात्री" का अर्थ है – जो सभी सिद्धियाँ देने वाली हैं। उनके पूजन से जीवन में सफलता, समृद्धि और आत्मिक उन्नति होती है।
मां सिद्धिदात्री का महत्व
मां सिद्धिदात्री आठ भुजाओं वाली देवी हैं और उनके हाथों में शस्त्र, कमल, वरमुद्रा और अभयमुद्रा हैं। उनका वाहन शेर है, जो साहस और शक्ति का प्रतीक है। उनके इस स्वरूप का महत्व इसलिए भी है क्योंकि वे अज्ञान, बुराई और भय को नष्ट कर देती हैं। साधक उनके पूजन से जीवन में नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति पाता है और सभी प्रकार के भौतिक और आध्यात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त करता है।
पूजा-विधि और अर्पण
नवमी के दिन प्रातः स्नान कर भक्त माँ सिद्धिदात्री की प्रतिमा या चित्र को गंगाजल से शुद्ध करते हैं। उन्हें लाल और पीले रंग के फूल, चंदन और दूध का भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है। "ॐ देवी सिद्धिदात्रियै नमः" मंत्र का जाप करने से भक्त को मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इस दिन की पूजा विशेष रूप से शक्ति, ज्ञान और स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए की जाती है।
आध्यात्मिक संदेश
मां सिद्धिदात्री का संदेश है कि साधना, भक्ति और सच्चे हृदय से किया गया कर्म जीवन को सिद्धियों की ओर ले जाता है। वे हमें यह सिखाती हैं कि आध्यात्मिक और भौतिक सिद्धियाँ तभी मिलती हैं जब व्यक्ति अपने जीवन में अनुशासन, संयम और विश्वास बनाए रखे। नवमी की साधना साधक को आंतरिक शक्ति, धैर्य और जीवन में सफलता प्रदान करती है। उनका स्वरूप यह प्रेरणा देता है कि जीवन की हर चुनौती पर विजय पाई जा सकती है।